सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई जारी, याचिकाकर्ताओं ने जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ संशोधन कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाओं में जिन तीन मुख्य बिंदुओं पर रोक की मांग की गई थी, उन पर सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया जा चुका है।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने यह कहा कि मामला सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वक्फ संपत्तियों पर व्यापक अतिक्रमण से जुड़ा है। सिब्बल ने दावा किया कि पूरा कानून इस उद्देश्य से तैयार किया गया है ताकि वक्फ की संपत्तियों को बिना कानूनी प्रक्रिया के जब्त किया जा सके।

सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल और सिब्बल के बीच बहस

तुषार मेहता ने कोर्ट से आग्रह किया कि सुनवाई को उन्हीं तीन मुद्दों तक सीमित रखा जाए, जिन पर उन्होंने जवाब प्रस्तुत किया है। इस पर सिब्बल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि अदालत अंतरिम राहत पर भी विचार करेगी, ऐसे में केवल तीन बिंदुओं तक सीमित रहना उचित नहीं होगा।

वहीं, कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी टिप्पणी की कि इस प्रकार के मामलों की सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती।

सिब्बल की दलील: संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन

कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि संविधान के तहत सरकार किसी धार्मिक संस्था को वित्तीय सहायता नहीं दे सकती, फिर चाहे वह मस्जिद हो या कब्रिस्तान। उन्होंने कहा कि लोग आमतौर पर अपनी संपत्ति जीवन के अंतिम चरण में वक्फ को समर्पित करते हैं। लेकिन अब नए संशोधन के तहत संपत्तियों को विवाद की आड़ में आसानी से छीना जा सकता है।

सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि संशोधित कानून के तहत वक्फ संपत्तियों की पहचान और सुरक्षा की बजाय, उन्हें बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अधिग्रहित करने का प्रयास किया जा रहा है।

केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर सवाल

सुनवाई में सिब्बल ने यह भी कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में बड़ा बदलाव किया गया है। उन्होंने बताया कि अब परिषद में 12 गैर-मुस्लिम और केवल 10 मुस्लिम सदस्य हैं, जबकि पहले सभी सदस्य मुस्लिम होते थे। साथ ही, उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) भी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त गैर-मुस्लिम व्यक्ति हो सकता है।

संविधान के अनुच्छेदों के उल्लंघन का आरोप

कपिल सिब्बल ने यह तर्क भी दिया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 26 और 27 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के संचालन के अधिकार की रक्षा करते हैं।

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