वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं, सुप्रीम कोर्ट में सरकार की दलील

सुप्रीम कोर्ट में आज पुनः वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। अदालत इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने की संभावना पर विचार कर रही है। इस सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ कर रही है। गत दिवस लगभग ढाई घंटे तक याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कानून की कई कमियों को उजागर किया था। आज केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलें पेश कीं।

सरकार की दलील में कहा गया कि जिन व्यक्तियों द्वारा यह जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं, उनमें कोई भी प्रभावित पक्ष नहीं है। संसद की विधायी क्षमता पर सवाल उठाना अनुचित है, क्योंकि यही आधार पहले भी कानून पर रोक लगाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। एसजी मेहता ने यह भी कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।

सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है कि वक्फ संपत्तियों को छीना जा रहा है, जबकि ऐसा कोई आधार नहीं है। उन्होंने बताया कि तीन अपवादों को छोड़कर भविष्य में वक्फ बाय यूजर की अनुमति नहीं होगी और यह सभी संपत्तियां पंजीकृत होनी चाहिए। कोई भी ऐसा दावा नहीं कर सकता कि 2024 तक वक्फ पंजीकृत नहीं है। यदि ऐसा हुआ, तो यह 102 वर्षों से चले आ रहे नियमों का उलट होगा। उन्होंने बताया कि एक अपवाद सरकारी संपत्तियों को लेकर है, जहां सरकार मालिक नहीं बल्कि कस्टोडियन होती है।

मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार सभी नागरिकों के लिए ट्रस्ट के रूप में भूमि रखती है और वक्फ बाय यूजर की परिभाषा के अनुसार संपत्ति किसी और की होती है, जबकि उपयोग करने का अधिकार सीमित होता है। इसलिए निजी या सरकारी संपत्तियों का उचित उपयोग आवश्यक है, और सरकार जांच कर सकती है कि संपत्ति उसका है या नहीं।

उन्होंने बताया कि प्रारंभिक विधेयक में कलेक्टर को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया था, लेकिन जेपीसी की सिफारिश पर किसी और अधिकारी को नामित किया गया है। जब सीजेआई गवई ने पूछा कि क्या यह केवल औपचारिकता होगी, तो मेहता ने कहा कि यह सही है, और यदि सरकार स्वामित्व चाहती है तो मुकदमा दायर करना होगा।

सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं के तर्क को चुनौती देते हुए कहा कि कलेक्टर की जांच के बाद भी संपत्ति पर कब्जा सरकार को तभी मिलेगा जब टाइटल के लिए मुकदमा जीत लिया जाएगा। इस पर मेहता ने पुष्टि की कि बिना विधिक प्रक्रिया के कब्जा नहीं बदलेगा।

सरकार ने यह भी कहा कि यदि कोई वक्फ बाय यूजर के रूप में पंजीकृत है, तो विवाद की स्थिति में न्यायालयों का फैसला मान्य होगा, और वे इस मामले को उसी आधार पर सुलझाएंगे।

अदालत में सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि वक्फ बाय यूजर के सिद्धांत को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। मेहता ने स्पष्ट किया कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एक दान करने का तरीका है, ठीक उसी तरह जैसे अन्य धर्मों में दान किया जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here