हमीरपुर एवं आसपास के क्षेत्रों में दीमक (सीणक) की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह कीट न केवल फसलों और घरों में लगी लकड़ी को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि अब पेड़-पौधों को भी प्रभावित कर रही है। भारत में हर साल दीमक के कारण करोड़ों रुपये का नुकसान फसलों, वन संपदा, भवनों की लकड़ी और भंडारण में होता है।
नेरी महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. वीरेंद्र राणा ने हाल ही में महाविद्यालय में मृदा के लगभग तीन फुट नीचे स्थित दीमक की बामी का निष्कासन किया। इस बामी की चौड़ाई लगभग 3.8 फुट और चिमनियों की लंबाई लगभग तीन फुट थी। शोध के दौरान कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने इस बामी से दीमक की रानी को भी निकाला।
बामी से निकाली गई रानी दीमक की लंबाई 9.85 सेंटीमीटर थी और इसकी उम्र लगभग तीन वर्ष थी, जो इसे युवा दर्शाती है। हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाले मुख्य दीमक के प्रजाति माइक्रोटर्मिस ओवैसी हैं। वर्षा ऋतु के दौरान ये दीमक प्रजनन के लिए रोशनी की ओर आकर्षित होती हैं और इसी दौरान उनका प्रजनन कार्य शुरू होता है। रानी दीमक का मुख्य कार्य अंडे देना होता है, जो एक सेकंड में एक अंडा देती है और 5 से 25 वर्षों तक अंडे देने का सिलसिला चलाती रहती है। इस अवधि में यह प्रजनन करती रहती है। शोधकर्ताओं ने दीमक के जीवन चक्र पर भी अध्ययन शुरू कर दिया है।
दीमक से बचाव के उपाय
डॉ. राणा ने बताया कि यदि दीमक का प्रकोप ज्यादा हो तो आसपास की बामी को सावधानी से खोदकर रानी दीमक को नष्ट करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बुवाई से पहले या बाद में मृदा में क्लोरपायरीफॉस 20-ईसी का 2 से 3 लीटर प्रति हेक्टेयर या 2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव किया जा सकता है। हालांकि दीमक को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है। इसके बावजूद, दीमक के नुकसान के साथ-साथ इसके कुछ लाभ भी प्रकृति में होते हैं। इसलिए फसलों की रक्षा एवं संरक्षण के लिए एकीकृत तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है। जहाँ दीमक का प्रभाव अधिक हो, वहां खेतों में क्लोरपायरीफॉस का छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ खेतों में पूरी तरह सड़ी हुई खाद और गोबर का उपयोग करना चाहिए क्योंकि कच्ची या अधपकी खाद दीमक के प्रकोप को बढ़ावा देती है।