सुप्रीम कोर्ट ने एक नाबालिग छात्रा के अपहरण और दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दो दोषियों की याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे गंभीर मामलों में किसी भी प्रकार की राहत की गुंजाइश नहीं है।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें संजय पैकरा और पुष्पम यादव को दोषी ठहराया गया था। अदालत ने कहा, “आपने स्कूल वैन चालक के साथ मिलकर नाबालिग बच्ची का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया। यह अत्यंत गंभीर अपराध है, जिसमें किसी तरह की नरमी नहीं बरती जा सकती।”
‘नाबालिग की सहमति की दलील बेमानी’
पीठ ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि पीड़िता की सहमति थी या उसने विरोध नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लड़की की उम्र नाबालिग होने की पुष्टि हो चुकी है और यही तथ्य पर्याप्त है।
हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णय बरकरार
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त 2024 को वर्ष 2019 के इस मामले में तीन आरोपियों—संजय पैकरा, पुष्पम यादव और स्कूल वैन चालक संतोष गुप्ता—को दोषी ठहराया था। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने भी 5 अक्तूबर 2021 को तीनों को आजीवन कारावास और एक-एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
न्यायालय में युवा वकील के व्यवहार पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक युवा वकील के गैर-पेशेवर रवैये पर असंतोष जताया। न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने उस वकील की आलोचना की, जो आदेश लिखे जाते समय अदालत से बाहर चली गई थीं। पीठ ने कहा, “आज की युवा पीढ़ी सिर्फ फाइल पढ़ने को ही वकालत समझ रही है, जबकि वास्तविक न्यायिक दक्षता का 70 प्रतिशत हिस्सा अदालत की कार्यशैली और अनुशासन में है।”