कांग्रेस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा में युद्धविराम की मांग वाले प्रस्ताव पर भारत द्वारा मतदान से दूरी बनाए जाने को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है। पार्टी ने इसे “नैतिक रूप से कायरतापूर्ण कृत्य” करार देते हुए कहा कि जो सरकार युद्धविराम के पक्ष में खड़े होने से घबराए, वह देश और दुनिया को नैतिक नेतृत्व देने की हकदार नहीं हो सकती।
कांग्रेस ने यह सवाल भी उठाया कि आखिर बीते छह महीनों में ऐसा क्या बदला कि भारत ने अब युद्धविराम का समर्थन करना बंद कर दिया? साथ ही यह भी पूछा गया कि क्या सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की फिलिस्तीन पर अपनाई गई सैद्धांतिक नीति को भी पीछे छोड़ दिया है?
भारत समेत 19 देशों ने मतदान से बनाई दूरी
संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्पेन द्वारा प्रस्तुत किए गए इस मसौदा प्रस्ताव में गाजा में तात्कालिक, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग के साथ-साथ हमास और अन्य संगठनों द्वारा बंधक बनाए गए सभी व्यक्तियों की तत्काल रिहाई की बात भी शामिल थी। प्रस्ताव पर हुए मतदान में 149 देशों ने पक्ष में वोट किया, 12 ने विरोध में, जबकि भारत समेत 19 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
प्रियंका गांधी का तीखा बयान
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भारत की अनुपस्थिति को निराशाजनक बताते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार ने नागरिकों की सुरक्षा और मानवीय मूल्यों के समर्थन में सामने आने से परहेज किया।
उन्होंने कहा कि गाजा में अब तक लगभग 60,000 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, और एक संपूर्ण आबादी भूख और युद्ध की पीड़ा झेल रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत सरकार इज़राइल के प्रधान मंत्री नेतन्याहू की आक्रामक नीतियों और ईरान पर की गई कार्रवाई पर भी मौन या समर्थन जताती नजर आ रही है।
भारत को दिखानी चाहिए नैतिक नेतृत्व की क्षमता
प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि भारत ने हमेशा शांति और मानवता के पक्ष में खड़ा होने की परंपरा निभाई है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या देश अब अपने संवैधानिक मूल्यों और स्वतंत्रता संग्राम की बुनियादी शिक्षाओं से विमुख हो रहा है? उन्होंने जोर दिया कि आज आवश्यकता है कि भारत एक बार फिर सत्य, अहिंसा और न्याय के लिए दृढ़तापूर्वक खड़ा हो।
केसी वेणुगोपाल ने याद दिलाया वाजपेयी का रुख
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने अपने बयान में कहा कि भारत ऐतिहासिक रूप से पश्चिम एशिया में शांति और संवाद का पक्षधर रहा है, लेकिन अब वह दक्षिण एशिया, ब्रिक्स और एससीओ समूह में ऐसा एकमात्र देश बन गया है जिसने इस प्रस्ताव से दूरी बनाई।
उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत अब युद्ध और अन्याय के विरोध में अपनाए गए अपने सैद्धांतिक दृष्टिकोण से पीछे हट रहा है? उन्होंने विदेश मंत्रालय से यह स्पष्ट करने की मांग की कि आखिर छह महीनों में ऐसा क्या बदला जिसने भारत के रुख को बदल डाला।
पवन खेड़ा का आरोप—भारत ने अपने ऐतिहासिक रुख से मुंह मोड़ा
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भारत के मतदान से अलग रहने को “नैतिक कमजोरी” और “गौरवशाली विरासत से विश्वासघात” बताया। उन्होंने याद दिलाया कि भारत 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना था, 1983 में NAM शिखर सम्मेलन में यासिर अराफात को आमंत्रित किया गया था और 1988 में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी थी।
खेड़ा ने कहा कि भारत ने हमेशा न्याय और मानवता के सिद्धांतों पर खड़े होने का विकल्प चुना, न कि किसी राजनीतिक रणनीति के तहत। लेकिन मौजूदा निर्णयों से वह वैचारिक परंपरा खतरे में पड़ती दिख रही है।