तिरंगे में लिपटा लौट आया गांव का लाल, वायुसेना के जांबाज को दी गई अंतिम विदाई

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के तिंदनी गांव में रविवार का दिन शोक और भावुकता से भरा रहा। गांव का होनहार पुत्र और भारतीय वायुसेना का वीर जवान, 35 वर्षीय ऋषिकांत विश्वकर्मा, आज पूरे राजकीय सम्मान और एयरफोर्स की सलामी के साथ पंचतत्व में विलीन हो गया। हर आंख नम थी, जब उनकी चार वर्षीय बेटी ने ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष के साथ अपने पिता को अंतिम विदाई दी।

ऋषिकांत वर्तमान में कर्नाटक के बेलगाम में भारतीय वायुसेना की पुलिस इकाई में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर के पद पर तैनात थे। उन्होंने 2011 में एयरफोर्स जॉइन की थी। हाल ही में वे बहन की शादी में शामिल होने के लिए एक महीने की छुट्टी पर अपने गांव आए थे और 14 जून को वापस ड्यूटी पर लौटने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही एक हादसा सब कुछ बदल गया।

सड़क दुर्घटना में गई जान

दो दिन पहले मल्लाह पिपरिया के पास एक तेज रफ्तार कार ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी। गंभीर रूप से घायल ऋषिकांत को जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। जैसे ही उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा गांव पहुंचा, पूरा माहौल शोकाकुल हो गया। नागपुर से आई एयरफोर्स की टीम ने उन्हें सैन्य सम्मान के साथ अंतिम सलामी दी।

बेटी की विदाई ने नम की आंखें

ऋषिकांत की मासूम बेटी द्वारा ‘भारत माता की जय’ कहने के भावुक क्षण ने वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें भर दीं। पत्नी ने कहा कि वह अपनी बेटी को भी पति के आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करेंगी। पिता भरतलाल विश्वकर्मा, जो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं, बेटे की असामयिक मौत से टूट चुके हैं। वहीं, भाई लखनलाल विश्वकर्मा ने बताया कि हादसे में एक ग्रे रंग की कार लापरवाही से टकराई थी। परिवार ने आरोपी चालक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

पूरा गांव उमड़ा अंतिम विदाई में

ऋषिकांत के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए गांव भर से लोग पहुंचे। कोई कंधा देने आया, तो कोई फूल अर्पित करने; बहुत से लोग मौन रहकर अश्रुपूरित आंखों से उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे। ग्रामीणों और उनके मित्रों ने बताया कि ऋषिकांत न सिर्फ अनुशासित और मेहनती थे, बल्कि हमेशा दूसरों की मदद को तत्पर रहते थे। वे गांव की गतिविधियों में भी सक्रिय भूमिका निभाते थे।

आज तिंदनी गांव की मिट्टी ने एक और सपूत को खो दिया है। ऋषिकांत अब भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके साहस, समर्पण और देशभक्ति की गाथा हमेशा गांव और जिले की यादों में जीवित रहेगी।

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