रूस-यूक्रेन संघर्ष पर बोले डोनाल्ड ट्रंप: पुतिन से हूं नाराज़, युद्ध रोकना आसान नहीं

रूस द्वारा यूक्रेन पर लगातार किए जा रहे हमलों को लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर नाराजगी जाहिर की है। मंगलवार को व्हाइट हाउस में आयोजित एक बैठक में उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर जारी हमले चिंता का विषय हैं और इसके चलते वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बेहद असंतुष्ट हैं। ट्रंप ने स्पष्ट किया कि यह युद्ध अब तक अनेक जानें ले चुका है और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

पहले जताई थी युद्ध समाप्त करने की उम्मीद

गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पिछले चुनाव प्रचार अभियान के दौरान यह दावा किया था कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्द समाप्त करवा सकते हैं। हालांकि, अब उन्होंने माना है कि पुतिन के रुख में बदलाव लाना उतना आसान नहीं है, जितना उन्होंने पहले सोचा था। ट्रंप ने कुछ समय पूर्व पुतिन से फोन पर बात की थी, जिसके बाद उनका कहना था कि उन्हें नहीं लगता कि पुतिन युद्ध रोकने के पक्ष में हैं। इसी सप्ताह इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ रात्रिभोज के दौरान भी उन्होंने कहा था कि अब वह पुतिन से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं।

यूक्रेन को फिर मिलेगी सैन्य सहायता

कैबिनेट की बैठक के दौरान ट्रंप ने यह घोषणा भी की कि अमेरिका यूक्रेन को पुनः रक्षात्मक हथियार उपलब्ध कराएगा। उन्होंने बताया कि पहले इस मदद पर रोक लगाई गई थी, लेकिन अब हालात को देखते हुए फैसला बदला गया है। ट्रंप ने पुतिन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह मानवता के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रहे हैं और बड़ी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं, ऐसे में अमेरिका ने यूक्रेन को सहायता देने का निर्णय लिया है। जब उनसे यह पूछा गया कि पहले सहायता पर प्रतिबंध किसने लगाया था, तो उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “मुझे नहीं पता, आप ही बताइए।”

यूक्रेन को मिला अमेरिका का सबसे उन्नत हथियार

अपने वक्तव्य के अंत में ट्रंप ने यूक्रेनी नागरिकों की बहादुरी की सराहना करते हुए कहा कि अमेरिका ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ हथियार मुहैया कराए हैं। उनका मानना है कि यदि यह सैन्य सहायता समय पर न दी जाती, तो शायद यह युद्ध केवल कुछ दिनों में समाप्त हो जाता। उनके ताज़ा बयानों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि रूस-यूक्रेन संकट को लेकर उनका रुख अब पहले जैसा नहीं रहा, और यह मसला उनकी विदेश नीति के लिए एक प्रमुख चुनौती बन गया है।

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