सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने के प्रयासों में नया मोड़ आया है। बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल की मौजूदगी में पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच इस मुद्दे पर अहम बैठक हुई।
बैठक के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्पष्ट किया कि यदि सिंधु जल संधि रद्द होती है और चिनाब व रावी चैनल से पंजाब को मिलने वाले 23 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) जल में से राज्य को उसका हिस्सा सुनिश्चित होता है, तो वह हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश को पानी देने में कोई आपत्ति नहीं रखते। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी इस प्रस्ताव पर सहमति जताई।
मुख्यमंत्री मान ने कहा, “हरियाणा हमारा विरोधी नहीं, बल्कि भाई है। यदि सिंधु जल संधि के समाप्त होने पर चिनाब, रावी और पुंछ नदियों से पंजाब को रिपेरियन राज्य के तौर पर 23 एमएएफ पानी मिलता है, तो एसवाईएल को लेकर केवल 3-4 एमएएफ जल को लेकर ही विवाद शेष रहेगा, जिसे आसानी से हल किया जा सकता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पुराने विवादों को पकड़कर बैठने से समाधान संभव नहीं है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि एसवाईएल विवाद अब पंजाब के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है, जिसे अब स्थायी रूप से समाप्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से इस दिशा में शीघ्र निर्णय लेने की अपील की। अगली बैठक 5 अगस्त को दिल्ली में होगी, जबकि 13 अगस्त को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रहेगा। मुख्यमंत्री को उम्मीद है कि 5 अगस्त की बैठक में उनके सुझावों पर अमल कर केंद्र सरकार समाधान की दिशा में सकारात्मक भूमिका निभाएगी।
बीबीएमबी पर भी जताई नाराजगी
बैठक के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बताया कि उन्होंने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) को लेकर भी अपनी चिंता केंद्रीय जल शक्ति मंत्री के समक्ष रखी। उन्होंने आरोप लगाया कि बीबीएमबी पंजाब के अधिकारों की अनदेखी कर रहा है और राज्य के अधिकार क्षेत्र को सीमित करने वाले आदेश जारी किए जा रहे हैं। मान ने कहा कि वह पंजाब के हितों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2022 तक राज्य में केवल 22 प्रतिशत नहरी जल का उपयोग हो रहा था, जो अब बढ़कर 61 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।