बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। इस दौरान अदालत ने चुनाव आयोग से तीखे सवाल किए। न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग जो प्रक्रिया अपना रहा है, वह संविधान के तहत उसकी जिम्मेदारी है, लेकिन नागरिकता का मुद्दा गृहमंत्रालय के दायरे में आता है, न कि चुनाव आयोग के।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ – न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची – इस मामले की सुनवाई कर रही है। अदालत ने कहा कि यदि आयोग को नागरिकता की जांच करनी ही थी तो उसे पहले ही यह प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी, अब बहुत देर हो चुकी है।
न्यायमूर्ति बागची ने स्पष्ट किया कि गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया में गैर-नागरिकों को सूची से बाहर करना कोई अनुचित बात नहीं है, लेकिन यह कार्य चुनाव से पहले पूरा होना चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने यह भी जोड़ा कि एक बार मतदाता सूची अधिसूचित हो जाने के बाद उसमें हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं होता।
याचिकाकर्ता की दलील:
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस. ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के प्रावधानों के तहत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिनियम दो प्रकार की पुनरीक्षण प्रक्रिया की अनुमति देता है—गहन और संक्षिप्त। गहन पुनरीक्षण के दौरान पूरी मतदाता सूची को खारिज कर नये सिरे से सूची बनाई जाती है, जिससे सभी मतदाताओं को फिर से प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। उन्होंने विशेष पुनरीक्षण के आदेश को इसी श्रेणी का बताया।
इस पर न्यायालय ने कहा कि आयोग ने पिछली बार 2003 में यह प्रक्रिया अपनाई थी, और उसके पास इसके आंकड़े भी मौजूद हैं। ऐसे में वह दोबारा क्यों यह प्रक्रिया दोहराएगा, इसकी भी तार्किक वजह है।
आधार कार्ड और नागरिकता पर सवाल
चुनाव आयोग द्वारा आधार को सत्यापन दस्तावेजों से बाहर रखने के फैसले पर अदालत ने पूछा कि आयोग नागरिकता के प्रश्न को विशेष पुनरीक्षण के साथ क्यों जोड़ रहा है, जबकि यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस पर आयोग ने जवाब दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
जस्टिस बागची ने कहा कि आधार को पहचान पत्र की श्रेणी से बाहर करना गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसे लेकर याचिकाकर्ता का आपत्ति जताना भी अप्रासंगिक नहीं है।
“गलियों में न जाएं, हाईवे पर रहें”: सुप्रीम कोर्ट
जब बहस लंबी खिंचने लगी तो न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की कि इस बहस को ज्यादा जटिल न बनाया जाए। उन्होंने कहा, “हमें विषय के मूल बिंदु पर रहना चाहिए, न कि अनावश्यक विस्तार में जाना चाहिए।”
विपक्षी दलों की याचिकाएं भी शामिल
बिहार में चुनाव से पहले शुरू हुए विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार), समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई, और सीपीआई (एमएल) समेत कई दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। इनमें आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के.सी. वेणुगोपाल, सुप्रिया सुले, और अन्य नेताओं ने विशेष पुनरीक्षण की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए हैं।