नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत मतदाता पहचान की प्रक्रिया पर चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि वह आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार करने पर विचार करे।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने के लिए 21 जुलाई तक का समय दिया गया है, जबकि अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। हालांकि, फिलहाल कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया है।
चुनाव से ठीक पहले SIR पर उठे सवाल
पीठ ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि विधानसभा चुनावों के कुछ महीने पहले ही इस तरह का व्यापक संशोधन क्यों शुरू किया गया। न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की, “यदि नागरिकता की जांच करनी ही थी, तो यह कार्य पहले होना चाहिए था। अब समय बहुत सीमित है।”
चुनाव आयोग ने दी अपनी सफाई
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसराज द्विवेदी ने दलील दी कि मतदाता सूची में शुद्धता बनाए रखना आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया केवल योग्य मतदाताओं को सूची में शामिल करने और अपात्रों को हटाने के लिए है। साथ ही आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाता, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदान का अधिकार है।
द्विवेदी ने यह भी सवाल उठाया, “यदि चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है, तो फिर यह अधिकार किसके पास है?”
10 से अधिक याचिकाएं दाखिल, कई सांसद भी याचिकाकर्ता
इस मुद्दे पर 10 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। प्रमुख याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दायर की है। इसके अलावा, कई विपक्षी सांसदों—राजद के मनोज झा, तृणमूल की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, राकांपा (सपा) की सुप्रिया सुले, भाकपा के डी. राजा, सपा के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य—ने भी इस अभियान पर रोक लगाने की मांग करते हुए कोर्ट का रुख किया है।