नई दिल्ली। देश के कई हिस्से इस समय भीषण प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में हैं। असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, केरल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित छह से अधिक राज्य बाढ़ और भूस्खलन की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं। कई नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है, सैकड़ों सड़कें अवरुद्ध हैं और दर्जनों लोगों की जानें जा चुकी हैं। हालात की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने आपातकालीन राहत के रूप में ₹1,066.80 करोड़ की सहायता राशि जारी की है।
तत्काल राहत के लिए SDRF से जारी हुई आर्थिक मदद
केंद्र ने SDRF (राज्य आपदा मोचन कोष) के तहत बाढ़ प्रभावित राज्यों को यह सहायता राशि मंजूर की है। असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, केरल और उत्तराखंड को इस राशि से राहत कार्यों में सहायता मिलेगी। वर्ष 2025 में अब तक 19 राज्यों को SDRF और NDRF मद से कुल ₹8,000 करोड़ से अधिक की सहायता दी जा चुकी है। केंद्र द्वारा राहत राशि के साथ-साथ सेना की टुकड़ियां, एनडीआरएफ की टीमें और वायुसेना के हेलिकॉप्टर जैसी लॉजिस्टिक मदद भी प्रदान की जा रही है।
पूर्वोत्तर में सेना का ‘ऑपरेशन जल राहत-2’ शुरू
असम, मणिपुर और नागालैंड में सेना ने बड़े पैमाने पर राहत कार्य प्रारंभ किए हैं। ‘ऑपरेशन जल राहत-2’ के तहत अब तक 40 सैन्य इकाइयों की तैनाती की जा चुकी है। अभियान के दौरान 3,800 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला गया, वहीं 2,095 से अधिक नागरिकों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई गई है। हजारों राशन किट और पानी की बोतलें प्रभावित क्षेत्रों में बांटी गई हैं। असम के गोलाघाट जिले में धनसिरी नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है, जबकि नागालैंड के दीमापुर क्षेत्र में सेना ने सिंगरिजन कॉलोनी में आपात सहायता पहुंचाई।
हिमाचल में मानसून की मार, 80 से अधिक लोगों की जान गई
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष मानसून भारी तबाही लेकर आया है। बादल फटने, अचानक बाढ़ और भूस्खलनों की घटनाओं में अब तक 80 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। मंडी, शिमला, कांगड़ा और सिरमौर जिलों में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है। 28 लोग अभी भी लापता हैं और उनकी तलाश के लिए ड्रोन तथा खोजी कुत्तों की मदद ली जा रही है। राज्य सरकार के अनुसार, अब तक ₹692 करोड़ से अधिक की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है।
वैज्ञानिक चेतावनी: “अब हिम नहीं, सिर्फ जल और संकट आएगा”
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सुरेश अत्री ने चेताया है कि ये आपदाएं केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवजनित हैं। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में पिछले छह दशकों में तापमान 0.9°C तक बढ़ चुका है, जो देश के औसत से अधिक है। इसके परिणामस्वरूप बारिश की तीव्रता बढ़ी है, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं।
उनके अनुसार, जंगलों की पारंपरिक जलनिकासी प्रणाली टूट चुकी है, घास के मैदान नष्ट हो रहे हैं और नदियों के किनारे अनियंत्रित निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे आपदा की पृष्ठभूमि बन रही है। “इन घटनाओं को हम प्राकृतिक कहकर अनदेखा नहीं कर सकते, यह हमारे पर्यावरणीय व्यवहार का परिणाम है,” उन्होंने कहा।