विदेश मंत्री एस. जयशंकर शीघ्र ही शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भाग लेने के लिए चीन रवाना होंगे। यह दौरा 2020 की गलवान घाटी की झड़प के बाद पहली बार होगा जब भारत का कोई वरिष्ठ नेता चीन की यात्रा कर रहा है। जयशंकर फिलहाल सिंगापुर में हैं, जहां से वह बीजिंग के लिए उड़ान भरेंगे। हालांकि, उनकी यात्रा से पहले ही चीन की ओर से तीखे बयान आने शुरू हो गए हैं।
रविवार को चीन के दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने भारत-चीन संबंधों को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि तिब्बत से जुड़े मुद्दे दोनों देशों के रिश्तों में एक ‘कांटे’ की तरह बन गए हैं और यह भारत के लिए एक “बोझ” जैसा बन चुका है।
यू जिंग ने आरोप लगाया कि भारत के कुछ पूर्व अधिकारी और बुद्धिजीवी वर्ग के लोग दलाई लामा और उनके उत्तराधिकार को लेकर अनुचित बयान दे रहे हैं। उन्होंने सलाह दी कि भारतीय विशेषज्ञों को तिब्बत (जिसे चीन ‘शीजांग’ कहता है) से संबंधित विषयों की संवेदनशीलता को समझते हुए उस पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
प्रवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि दलाई लामा का उत्तराधिकार पूरी तरह से चीन का आंतरिक मामला है और किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इससे पहले, चीन के राजदूत शू फेइहोंग भी दलाई लामा के पुनर्जन्म पर अपनी राय दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि चीन धार्मिक मामलों को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नियंत्रित करता है और आरोप लगाया कि दलाई लामा चीन विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। शू ने यह भी कहा कि चीन, किसी भी विदेशी संस्था या व्यक्ति द्वारा दलाई लामा के पुनर्जन्म की प्रक्रिया में हस्तक्षेप का विरोध करता है।
गौरतलब है कि यह विवाद उस समय फिर तेज़ हुआ जब दलाई लामा के 90वें जन्मदिन (9 जुलाई) के बाद पुनर्जन्म से संबंधित उनकी हालिया घोषणा सामने आई। उन्होंने कहा था कि केवल उनकी ओर से स्थापित ट्रस्ट ही उनके पुनर्जन्म की वैधता तय करेगा। इस पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई थी।
इस विवाद में भारत की ओर से भी कुछ प्रतिक्रियाएं आईं। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने दलाई लामा का समर्थन किया, जबकि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि भारत की सीमा तिब्बत से लगती है, न कि चीन से। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि सरकार धार्मिक विश्वासों और परंपराओं पर टिप्पणी नहीं करती है।