भारत-चीन संबंध रचनात्मक बनें, मतभेद को विवाद का रूप न दें: जयशंकर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों चीन दौरे पर हैं, जहां उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात कर भारत-चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। बैठक की शुरुआत में जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच वैश्विक और क्षेत्रीय विषयों पर सार्थक संवाद आवश्यक है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद जैसे साझा खतरों पर गंभीर विचार होगा। भारत का मानना है कि इन चुनौतियों के प्रति ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति को मजबूती से लागू किया जाना चाहिए।

जयशंकर ने कहा कि सीमा क्षेत्र में पिछले नौ महीनों के दौरान स्थिति को सामान्य करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। यह सीमा पर स्थिरता कायम रखने की दोतरफा कोशिशों का नतीजा है, जिससे दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल हो रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब समय आ गया है जब सीमा से जुड़े शेष विवादित मुद्दों पर भी प्राथमिकता से ध्यान दिया जाए।

व्यापार और संपर्क बढ़ाने पर भी चर्चा

भारत और चीन के संबंधों में व्यापार, अर्थव्यवस्था और आपसी संपर्क जैसे कई आयाम हैं। जयशंकर ने ज़ोर दिया कि दोनों देशों को ऐसे कदम नहीं उठाने चाहिए जो व्यापार में बाधा डालें या अवरोध उत्पन्न करें। उन्होंने कहा कि लोगों के बीच संपर्क को सुगम बनाना और वीजा व यात्रा से जुड़ी बाधाओं को दूर करना सहयोग को बढ़ावा देगा।

प्रतिस्पर्धा हो स्वस्थ, संघर्ष से बचाव जरूरी

उन्होंने दोहराया कि भारत और चीन पहले ही इस बात पर सहमत हो चुके हैं कि आपसी मतभेदों को विवाद का रूप नहीं लेने देना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में नहीं बदलने देना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए यह सोच आवश्यक है।

75 वर्षों के कूटनीतिक संबंध, आगे की राह

जयशंकर ने चीन को एससीओ की अध्यक्षता संभालने पर शुभकामनाएं दीं और कहा कि भारत रचनात्मक परिणामों के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि अक्टूबर 2024 में कजान में हुई भारत-चीन वार्ता के बाद से द्विपक्षीय संबंध सकारात्मक दिशा में बढ़ रहे हैं। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने पर भी उन्होंने संतोष जताया और कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू किए जाने पर चीन के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।

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