आधुनिक जीवनशैली में वैवाहिक संबंधों के टूटने पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने चिंता जताई है। न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लिकर की खंडपीठ ने एक युवक और उसके परिवार के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करते हुए कहा कि आजकल तुच्छ विवादों में विवाह जैसे पवित्र संबंध खतरे में पड़ जाते हैं। अदालत का मानना है कि यदि पति-पत्नी के बीच मतभेद इस हद तक बढ़ जाएं कि सुलह की गुंजाइश न रहे, तो ऐसे रिश्तों को तुरंत समाप्त कर देना ही उचित होगा, ताकि दोनों पक्षों का भविष्य प्रभावित न हो।
आपसी सहमति से तलाक के बाद दहेज मामला खारिज
इस मामले में दिसंबर 2023 में एक महिला ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था। इसके बाद पति पक्ष ने हाईकोर्ट का रुख कर केस रद्द करने की याचिका दायर की। दोनों पक्षों ने अदालत को बताया कि वे आपसी सहमति से तलाक ले चुके हैं और अब उनके बीच कोई विवाद नहीं है। महिला ने यह भी स्पष्ट किया कि उसे मामले की समाप्ति पर कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वह आगे बढ़ना चाहती है। इसके मद्देनज़र अदालत ने केस समाप्त कर दिया।
कोर्ट ने समझौते को दी मान्यता, दुरुपयोग पर जताई चिंता
पीठ ने कहा कि भले ही भारतीय दंड संहिता और दहेज निषेध अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में समझौते की अनुमति नहीं होती, लेकिन न्यायिक दृष्टिकोण से विशेष परिस्थितियों में मामले को समाप्त किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों में अक्सर पति पक्ष के कई सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी जाती है, जिससे दुर्भावना और तनाव बढ़ता है। ऐसे मामलों में संवेदनशील और व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
शादी सिर्फ सामाजिक अनुबंध नहीं, आत्मिक बंधन है
न्यायालय ने कहा कि विवाह केवल एक सामाजिक समझौता नहीं, बल्कि दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन है। आज के दौर में वैवाहिक विवाद समाज में गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं, जिनमें छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते टूट जाते हैं। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि वैवाहिक कानूनों का उद्देश्य रिश्तों को सुधारना था, लेकिन कई बार इनका दुरुपयोग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्तर पर गहरे घाव छोड़ देता है — जिससे न केवल पति-पत्नी, बल्कि उनके बच्चों और परिवारों को भी नुकसान होता है।