सारे जहां से अच्छा! लेकिन इन्हें कैसा दिखता है?

अंतरिक्ष में पहला कदम रखने वाला पहला अंतरिक्ष यात्री यूरी अलेक्सेयेविच गगारिन जब 12 अप्रैल 1961 को सोवियत अंतरिक्ष यान ‘वोस्ताक’ से पृथ्वी की कक्षा को भेदता हुआ अनन्त अज्ञात ग्रहों की ओर उड़ा तब पूरी दुनिया में खलबली मच गई थी। मुझे अभी तक याद है, ‘हिन्दुस्तान’ ने प्रथम पृष्ठ पर यह कौतु हल भरी खबर छापते हुए समाचार का शीर्षक दिया था- ‘गगनचारी गगारिन।’ गगारिन की भारत में खूब धूम मची। फाउंटेन पैन बनाने पाली एक कंपनी ने तो ‘गगारिन’ नाम का पैन ही बना डाला, जो लाखों की संख्या में बिके थे, एक गगारिन पैन मैंने भी खरीदा था।

यूरी गगारिन के अंतरिक्ष यात्री बनने और अंतरिक्ष यान से पृथ्वी का चक्कर काटने के मात्र 24 दिनों बाद अमेरिका का अंतरिक्ष यात्री एलन बी. शेपर्ड जूनियर 5 मई, 1961 को फ्रीडम 7 से उड़ा और पृथ्वी से 120 मील ऊपर अंतरिक्ष में चहलकद‌मी करने वाला दुनिया का पहला शख्स बन गया।

फिर तो अंतरिक्ष में महाशक्तियों की दौड़ शुरू हो गई। 3 अप्रैल, 1984 को भारत का प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा सोवियत अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 के जरिये अंतरिक्ष में पहुंचा। भारत के ऊपर से गुजरते हुए उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी से फोन पर बात की। उन्होंने प्रछा- ‘अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?’ राकेश शर्मा ने कहा ‘सारे जहां से अच्छा।’ देश के प्रति एक सच्चे भारतीय के दिल से निकली यह भावनात्मक आवाज भारत में ही नहीं, अंतरिक्ष में ही नहीं, अपितु समूचे ब्रह्माण्ड में आज भी गूंजती है, प्रतिध्वनित होती है और हर राष्ट्रभक्त भारतीय के हृदय को स्पृन्दित करती है।

जब अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यान आईएसएस में बैठा शुभांशु शुक्ला अन्तरिक्ष में 18 दिन गुजारने के बाद विदाई समारोह में कहता है- ‘अंतरिक्ष से भारत महत्वाकांक्षी, निडरता, आत्मविश्वास से भरा हुआ दिखता है, राकेश शर्मा के शब्दों को दोहराता है- भारत आज भी सारे जहां से अच्छा दिखता है’, तब उन लोगों को मिर्ची क्यों लग जाती है। उदित राज कहता है कि ब्राह्मण को क्यूं भेजा, दलित को क्यूं नहीं भेजा। ये उस युवराज के अंध समर्थक है जो इंग्लैंड, अमेरिका जा कर आज भी पिछड़ा, बेरोज़गारी, गरीबी, तानाशाही से युक्त देश बता कर कहते हैं कि तेल डाल दिया है बस माचिस की तिल्ली लगाने भर की देरी है। राकेश व शुभांशु, अंतरिक्ष से झूठ बोलते थे, या फिर ये खुद आंखों पर पट्टी बांध कर अंधे बन गए हैं?

छपते-छपते: 3 बजे शुभांशु शुक्ला पृथ्वी पर पहुंचे। भारत गदगद!

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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