कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को उच्च न्यायालय में स्पष्ट किया कि आईपीएस अधिकारी विकास कुमार का निलंबन उचित है। सरकार का तर्क था कि आरसीबी की जीत के जश्न की तैयारियों के दौरान अधिकारी और उनके सहयोगी पुलिसकर्मी एक पेशेवर सुरक्षा बल की बजाय टीम के “निजी सहायक” जैसे व्यवहार कर रहे थे। इस आयोजन के दौरान हुई भगदड़ में 11 लोगों की जान गई थी और 33 घायल हुए थे।
वरिष्ठों से बिना सलाह लिए शुरू की सुरक्षा व्यवस्था: सरकार
राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. राजगोपाल ने अदालत को बताया कि आईपीएल फाइनल से पहले आरसीबी की ओर से जीत का जश्न मनाने के लिए प्रस्ताव दिया गया था। ऐसे बड़े सार्वजनिक आयोजन के लिए जरूरी अनुमति नहीं ली गई थी। इसके बजाय अधिकारियों ने अपने वरिष्ठों से परामर्श किए बिना सुरक्षा इंतजाम शुरू कर दिए।
राजगोपाल ने दलील दी कि यदि अनुमति न मिलने की स्थिति में अधिकारी आरसीबी को कानूनन रास्ता अपनाने की सलाह देते, तो उचित प्रक्रिया के तहत अदालत से मार्गदर्शन लिया जा सकता था। लेकिन जिम्मेदारीपूर्ण कार्रवाई के अभाव में पूरे आयोजन में प्रशासनिक खामियां और कर्तव्य की अनदेखी देखने को मिली।
उन्होंने यह भी कहा कि भारी भीड़ की मौजूदगी को देखते हुए इतने कम समय में प्रभावी सुरक्षा व्यवस्था करना व्यावहारिक नहीं था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि निलंबन के समय अधिकारी ने हालात को संभालने के लिए क्या प्रयास किए थे।
कर्नाटक पुलिस अधिनियम का उल्लेख
राजगोपाल ने कर्नाटक राज्य पुलिस अधिनियम की धारा 35 का हवाला देते हुए बताया कि यह पुलिस को आवश्यक कार्रवाई का अधिकार देती है। उन्होंने कहा कि इस कानूनी प्रावधान का उपयोग न करना भी लापरवाही का संकेत है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर कोई गंभीर विमर्श या निर्देश नहीं दिया गया था।
अदालत में स्वीकार की गई सुरक्षा की कमी
न्यायमूर्ति एस.जी. पंडित और न्यायमूर्ति टी.एम. नदाफ की खंडपीठ द्वारा यह पूछे जाने पर कि आयोजन स्थल पर सुरक्षा की निगरानी किसके जिम्मे थी, राजगोपाल ने उत्तर दिया कि इसकी जिम्मेदारी राज्य पुलिस की थी और उन्होंने स्वीकार किया कि सुरक्षा के प्रबंध पर्याप्त नहीं थे।
उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) द्वारा निलंबन रद्द किए जाने के तर्कों पर भी सवाल उठाया, विशेषकर उस फैसले में अधिकारियों के प्रति सहानुभूति जताने की प्रवृत्ति को लेकर।