आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले का तंज: मेरी बातों से लोगों को होती है तकलीफ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने मंगलवार को दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा, “मेरे बोलने से कई बार कुछ लोगों को परेशानी हो जाती है। मैं तो बोलता ही रहता हूं, लेकिन दूसरों को कुछ कहने से भी तकलीफ होती है।” उन्होंने यह बात केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की ओर इशारा करते हुए कही और उनसे आग्रह किया कि वे कार्यक्रम में अधिक समय तक बोलें।

यह टिप्पणी उनके हालिया बयान से जुड़ी मानी जा रही है, जिसमें उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान जोड़े गए “सेक्युलर” और “समाजवाद” जैसे शब्दों पर दोबारा विचार करने की बात कही थी। उनके उस बयान के बाद विपक्षी दलों ने तीखा हमला बोला था, जबकि बीजेपी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी।

राजनीति में राकेश मिश्र की संभावनाओं पर इशारा

इस कार्यक्रम में विमोचित पुस्तक “समिधा” के लेखक राकेश मिश्र हैं, जो वर्तमान में बीजेपी मुख्यालय में कार्यरत हैं। पूर्व में वे वरिष्ठ नेता स्वर्गीय बाल आप्टे के सहायक रह चुके हैं और अमित शाह के अध्यक्षीय कार्यकाल में संगठनात्मक टीम का हिस्सा भी रहे हैं। संभवतः राजनीति में कदम रखने की उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए होसबोले ने कहा, “पुस्तक के लेखक की राजनीतिक दिशा तय करना अब भूपेंद्र यादव जी के हाथ में है।” उन्होंने आगे कहा, “राकेश जी के मन में राजनीति की भी आकांक्षा है, आगे का रास्ता भूपेंद्र जी दिखा सकते हैं।”

होसबोले की यह टिप्पणी संगठन के भीतर भूपेंद्र यादव की भूमिका को लेकर नई अटकलों को जन्म देती है। चर्चा है कि क्या संगठन में उनकी जिम्मेदारी और कद बढ़ सकता है? क्या वे भविष्य में पार्टी के शीर्ष पदों में से किसी पर आसीन हो सकते हैं?

संगठन में संवाद और सहभागिता ज़रूरी: होसबोले

कार्यक्रम के दौरान दत्तात्रेय होसबोले ने संगठन में संवाद की संस्कृति को ज़रूरी बताते हुए कहा कि हर कार्यकर्ता की बात सुनी जानी चाहिए, चाहे वह कितना भी छोटा हो। उन्होंने याद किया कि कैसे बाल आप्टे हर स्तर के कार्यकर्ताओं से राय लेते थे और कभी भी निर्णय थोपने का रवैया नहीं अपनाते थे। यह विचार आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक है, जहां नेतृत्व को सहयोग की भावना के साथ चलना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि आज के दौर में ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता है जो विचारों की उलझनों के बीच स्पष्ट दिशा दिखा सके। “हमारी सभ्यता का स्वभाव समावेशी है, जो दुनिया को अपनाने की भावना से प्रेरित है। हमें दुनिया से संघर्ष नहीं चाहिए, लेकिन अपनी पहचान भी स्पष्ट रखनी होगी।” उन्होंने यह भी कहा कि केवल भाषणों से नहीं, समाज को उदाहरण प्रस्तुत कर दुनिया को अपना स्थान दिखाना होगा।

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