श्रद्धा और आस्था का विशाल उत्सव बनी कांवड़ यात्रा

मुजफ्फरनगर। कांवड़ यात्रा अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा, आस्था और जनसमूह की संगठित शक्ति का प्रतीक बन चुकी है। यह यात्रा आज उस मुकाम पर पहुंच चुकी है, जहां इसे एक सरकारी कार्यक्रम के रूप में भी मान्यता मिल चुकी है।

वरिष्ठ समाजसेवी और चिंतक डॉ. अनुज अग्रवाल ने कहा कि श्रावण मास में होने वाली यह यात्रा कभी हजारों में सिमटी थी, लेकिन अब यह करोड़ों की संख्या पार कर चुकी है। पहले यह एक व्यक्तिगत तपस्या की तरह होती थी, लेकिन आज यह जनसामूहिक धार्मिक आयोजन का स्वरूप ले चुकी है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि इस यात्रा का कोई प्रमाणिक ऐतिहासिक स्रोत नहीं मिलता कि यह यात्रा कब गंगाजल लाने की परंपरा में बदल गई। माना जाता है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराई थी। उसी भावना से प्रेरणा लेकर श्रद्धालुओं ने कांवड़ यात्रा की परंपरा को आगे बढ़ाया।

उन्होंने बताया कि कांवड़ यात्रा अब केवल मनौती पूर्ण होने तक सीमित नहीं रही। यह आस्था के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी बन गई है। नौकरी मिलने, मुकदमा जीतने, संतान प्राप्ति, परीक्षा में सफलता जैसी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग गंगाजल लेकर शिवालयों में चढ़ाने लगे हैं।

बीते दो दशकों में यह यात्रा इतनी लोकप्रिय हो गई है कि देश की पारंपरिक यात्राएं—जैसे उड़ीसा की रथयात्रा, अमरनाथ यात्रा, ब्रज की चौरासी कोस परिक्रमा, महाराष्ट्र की गणेश यात्रा और बंगाल की दुर्गा पूजा यात्रा—भी इससे पीछे छूटती नज़र आती हैं। जहां ये यात्राएं कुछ लाख श्रद्धालुओं तक सीमित रह गई हैं, वहीं कांवड़ यात्रा हर साल अपने नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि सजावटी कांवड़ें, विशाल झांकियां, डीजे, भव्य भंडारे और सुरक्षा प्रबंधन अब इस यात्रा का हिस्सा बन चुके हैं। यह यात्रा अब धनबल, श्रद्धा और सामाजिक समर्पण का मिला-जुला रूप बन चुकी है।

प्रशासन भी इस जनसैलाब के अनुरूप अपनी भूमिका निभा रहा है। यात्रा मार्गों के स्कूलों में छुट्टियां, पथ प्रकाश की व्यवस्था, पुलिस बल की तैनाती, लापरवाही पर निलंबन, और यहां तक कि स्थानीय लोगों को विशेष पुलिस अधिकारी बनाकर ड्यूटी देना—all यह दर्शाता है कि सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है।

कांवड़ यात्रा अब महज एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि उत्तर भारत की सामाजिक चेतना, जनभावना और धार्मिक आस्था का एक विशाल उत्सव बन चुकी है।

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