नई दिल्ली/प्रयागराज। दिल्ली स्थित निवास पर जली हुई नकदी मिलने के बाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया ने गति पकड़ ली है। इस मामले में न केवल विपक्ष बल्कि सत्तापक्ष के कई सांसदों ने भी सक्रियता दिखाई है। वर्तमान में न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित कर पुनः इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया है।
लोकसभा और राज्यसभा में सौंपे गए नोटिस
लोकसभा में 145 सांसदों ने संयुक्त रूप से यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए नोटिस दिया है। इनमें विपक्ष के नेता राहुल गांधी, भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद व अनुराग ठाकुर, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल व के सुरेश, एनसीपी-एसपी की सुप्रिया सुले, डीएमके के टीआर बालू, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन और आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
वहीं, राज्यसभा में 63 सांसदों ने इसी आशय से नोटिस प्रस्तुत किया है। कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन के मुताबिक, आम आदमी पार्टी समेत विपक्षी इंडिया गठबंधन के अधिकांश सांसदों ने इस पहल को समर्थन दिया है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद भले ही उस समय उपस्थित नहीं थे, लेकिन वे भी नोटिस में हस्ताक्षर देने के लिए सहमत बताए गए हैं।
क्या है न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया?
संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया निर्धारित है। इसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में न्यूनतम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। यदि स्पीकर और सभापति दोनों नोटिस स्वीकार करते हैं, तो एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश, किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं। समिति तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है, जिसके बाद सदन में बहस और मतदान के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
जांच में क्या पाया गया?
प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि जिस कमरे से जली हुई नकदी के बंडल मिले, उस पर न्यायमूर्ति वर्मा अथवा उनके परिवार का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष नियंत्रण था। इसे गंभीर आचरण उल्लंघन माना गया है। हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा ने इन आरोपों को खारिज किया है और किसी भी प्रकार की अनियमितता से इनकार किया है।
ऐसे मामले पहले भी आए हैं सामने
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद में नोटिस दिया गया हो। उन्होंने बताया कि 13 दिसंबर 2024 को न्यायमूर्ति शेखर यादव को पदच्युत करने के लिए भी राज्यसभा में इसी प्रकार का प्रस्ताव रखा गया था।