ओम नमः शिवाय !

पचास के दशक में हम लोग कच्ची सड़क (मुजफ्फरनगर) पर रहते थे। तब सड़‌क कच्ची ही थी। सरवट, बझेड़ी, रथेड़ी ग्रामों को जोड़‌ती यह सड़क ग्राम सिसौना में पक्की सड़क पर निकली थी। श्रावण मास में कुछ लोग कंधे पर कांवड़ लिए हुए हमारे मकान के सामने से गुजरते थे। इन लोगों की वेशभूषा सामान्य व्यक्ति से अलग रहती थी। पूरे दिन में 2-4 कांवड़िए ही दिखाई देते थे। यह सिलसिला पूरे सावन चलता। हमारी नानी ने बताया था कि जो वस्तु कंथे पर रखी हुई हैं, उसे कांवड़ कहते हैं। दोनों ओर कलशों में गंगा जल भरा है जिसे शिवरात्रि को पुरा महादेव के मन्दिर में चढ़ायेंगे।

तब न आज की भांति कांवड़ सेवा शिविर लगते थे, न भंडारे, कांवड़ियों के दर्शन के लिए भीड़ भी नहीं जुड़ती थी। अलबत्ता शिवरात्रि से एक दिन पहले कच्ची सड़क के दोनों ओर स्त्री-पुरुषों, बच्चों की कतारें लग जाती थी। एक शिवभक्त हरिद्वार से गंगा जल लाकर 24 घंटों के भीतर पुरा महादेव के शिवालय में चढ़ाता था। 24 घंटों के भीतर हरिद्वार से पुरा महादेव पहुंचने का उसका संकल्प था। अधेड़ उम्र का लम्बा सा शिवभक्त कहां का था, हमें पता नहीं। इतना याद है कि जब प्रत्येक शिवरात्रि को वह कच्ची सड़क से गुज़रता तो लोगों की भीड़ एकत्र हो जाती और लोग हर-हर महादेव, जय शिव शंकर, बम-बम भोले के जयकारे लगाने लगते। कुछ मिनटों में ही वह शिवभक्त आंखों से ओझल हो जाता था।

शन: शन: कांवडधारी और गंगा जल लाने वाले शिवभक्तों की संख्या बढ़ने लगी। अब मकान गाजीवाला पुलिया के समीप है। एक ओर पूर्व की दिशा में कच्ची सड़क (जिसे मैं अहिल्याबाई रोड कहता हूं) और पश्चिम में जिला अस्पताल के सामने वाली जी.टी. रोड। बीच में आवास है। पूर्व की ओर देखता हूं तो कांवड़‌धारियों की कतार लगी है। कुछ शिवभक्तों ने कंधे पर ‌लटके बैग में गंगाजल का पात्र रखा हुआ है। कुछ गंगा जल का लोटा लटकाये चले जा रहे हैं। बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, सभी के पांव गन्तव्य की ओर बढ़े जा रहे हैं। कभी जिस सड़‌क से 4-5 कांवड़‌धारी गुज़रते थे, उस सड़क से अब हज़ारों नहीं लाखों शिवभक्त जा रहे हैं। कांधों पर गंगाजल के कलश लादे, भीषण गर्मी और चिलचिलाती धूप में, सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करने वाले इन शिवभक्तों के चरणों में मैं नमन कर कृतार्थ होता हूं। घर से पश्चिम की ओर दृष्टिपात करने पर छोटे वाहनों में डीजे के साथ शिवभक्तों की कतार दृष्टि गोचर होती है। हर हर महादेव से वातावरण गूंज रहा है।

मुजफ्फरनगर के शिव चौक पर मानों तमाम देश उमड़ा है। रात्रि की शोभा का बखान करना मुश्किल है। भारत के करोड़ों शिवभक्त हरिद्वार से गंगा जल लेकर देश के कोने कोने में पहुंचते हैं। यह सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है।

लेकिन यह इस बार क्या हुआ? नाम लिखना या लेना जरूरी नहीं है। सब जानते हैं। करोड़ों शिवभक्तों को आतंकी, चोर, भिखारी, उपद्रवी बताने और उन्हें बद‌नाम करने की होड़ लग गई। भारी कष्ट उठा कर 400, 500, 700 की पद यात्रा करने वाले कांवड़ि‌यों के मार्ग में सड़क पर कांच के टुकड़े बिखेर दिये गए। उनपर फूल बरसाने वालों की निन्दा की गई, गालियां सुनाई जा रही हैं।

प्रयागराज के ग्राम सराय ख्वाजा में कांवड़ यात्रा पर मस्जिद में एकत्र लोगों ने ईंट-पत्थर-तलवारों से हमला कर दिया। यात्रा में शामिल महिलाओं के साथ भी अभद्रता की गई। गांव से रामकृष्ण सरोज, पुरुषोत्तम सिंह, राजेन्द्र जायसवाल, अंकित सरोज, शशांक कश्यप, मनीष धीरज आदि शिवभक्त गंगा जल लेने प्रयागराज जा रहे थे कि मुस्लिमों की भीड़ ने हमला बोल दिया।

अब तक दुर्गापूजा, हनुमान जयन्ती एवं श्रीराम की शोभा यात्राओं पर पथराव होता था, आगजनी होती थी, दुकानें लुटती थीं, वाहन फूंके जाते थे। अब शिवभक्त कांवड़िये इनके निशाने पर आ गए हैं।

कुछ सेक्यूलरवादियों ने तो कांवड़ यात्रा पर रोक की मांग कर दी है। सेक्यूलर और समाजवादी भारत में अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए 40,000 जवानों की तैनाती करनी पड़ी है। चुनाव और वोट के लिए करोड़ों शिवभक्तों का अपमान सृष्टिकर्ता, सृष्टि के पालनहार, सृष्टि के संहारक का अपमान है। पुरुषोत्तम श्रीराम और राक्षसपति रावण ने जिनकी स्तुति की, लोकहित में जिन्होंने समुद्रमंथन से निकला कालकूट विष का पान किया, उन नीलकंठ भगवान् की निन्दा, अनादर के दुष्परिणाम के विषय में सोचा होता तो इनकी बुद्धि भ्रष्ट न होती।

शिव अनादि हैं, अनन्त हैं। शैव हों या वैष्णव, सनातनी हों या आर्यसमाजी सब उनकी सत्ता को स्वीकारते हैं, वे भी जो भारत से बाहर जाकर उनका बोसा लेते हैं।

प्रभो! स्वार्थलिप्सा ने इनकी मति हर ली है। ये भी आप ही की संतान हैं। इनको क्षमा करना।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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