इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ ली है। सूत्रों के अनुसार, संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – में उनके खिलाफ दाखिल महाभियोग प्रस्ताव की प्रारंभिक जांच चल रही है। इस जांच में हस्ताक्षरों की पुष्टि की जा रही है, जिसमें करीब एक सप्ताह का समय लग सकता है। इसके बाद तीन सदस्यीय जांच समिति के गठन की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा।
इस समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति की संयुक्त प्रक्रिया से किया जाएगा। पूर्व सभापति जगदीप धनखड़ ने पहले ही राज्यसभा में इस प्रस्ताव की जानकारी दी थी, जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी विपक्ष और सत्ता पक्ष के सांसदों की ओर से नोटिस सौंपा गया है।
स्पीकर-उपसभापति की बैठक में बनी रणनीति
गत बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के बीच बैठक हुई, जिसमें दोनों सदनों के महासचिव और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। बाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस बैठक में भाग लिया। लोकसभा में प्रस्तुत नोटिस पर 152 सांसदों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें सत्ता और विपक्ष दोनों के सदस्य शामिल हैं।
राज्यसभा में विपक्ष की पहल, सीमित समर्थन
राज्यसभा में यह प्रस्ताव मुख्य रूप से विपक्ष द्वारा लाया गया है, जिसमें 63 सांसदों का समर्थन मिला है। ‘न्यायाधीश (जांच) अधिनियम’ के तहत जब दोनों सदनों में एक ही दिन महाभियोग का नोटिस दिया जाता है, तो जांच समिति का गठन संयुक्त रूप से किया जाता है।
समिति के गठन की तैयारी
लोकसभा अध्यक्ष जल्द ही तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन करेंगे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात विधिवेत्ता शामिल होंगे। समिति यह जांच करेगी कि न्यायमूर्ति वर्मा के विरुद्ध लगे आरोप कितने गंभीर और प्रमाणिक हैं। दोष सिद्ध होने पर प्रस्ताव दोनों सदनों में पेश किया जाएगा, जिसे दो-तिहाई बहुमत से पारित करना आवश्यक होगा। इसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति से न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।
क्या है आरोपों की पृष्ठभूमि
मार्च में दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया था। बताया गया कि घटना के समय वे दिल्ली से बाहर थे। आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में अधजली मुद्रा की गड्डियां बरामद हुईं, जिसके बाद पूरे मामले ने गंभीर मोड़ ले लिया। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अब इसे संसदीय जांच के दायरे में लाया गया है।