कोलकाता। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने “अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल दंड विधान संशोधन) विधेयक, 2024” को राज्य सरकार को पुनः विचार के लिए लौटा दिया है। यह विधेयक आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ हुई दुष्कर्म और हत्या की घटना के बाद, महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था।
राज्य सरकार ने बलात्कार के मामलों में सख्ती का प्रयास किया
गत वर्ष हुई वीभत्स घटना के बाद विधानसभा में इस विधेयक को पारित किया गया था। इसमें बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्यु तक करने का प्रावधान किया गया था। राज्यपाल द्वारा विधेयक को पहले राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजा गया था, लेकिन अब इसे राज्य सरकार को वापस लौटा दिया गया है।
राज्यपाल की आपत्तियां: सजा असंगत और कठोर
राज्यपाल का कहना है कि प्रस्तावित सजा अनुपातहीन और अत्यधिक कठोर है। उन्होंने यह भी आपत्ति जताई कि विधेयक में धारा 65 को हटाने का प्रस्ताव—जो 16 वर्ष और 12 वर्ष से कम उम्र की पीड़िताओं के बीच अंतर करता था—कानूनी संतुलन के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, क्योंकि अलग-अलग अपराधों के लिए एक समान सजा न्यायसंगत नहीं मानी जा सकती।
इसके अतिरिक्त, प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि यदि पीड़िता की मृत्यु हो जाए या वह कोमा जैसी स्थिति में चली जाए, तो दोषी को मृत्युदंड अनिवार्य रूप से दिया जाए। इस पर भी राज्यपाल ने आपत्ति जताई है, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय के 1983 के “मिठू बनाम पंजाब” फैसले के विरुद्ध है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि सजा का निर्धारण न्यायिक विवेक पर आधारित होना चाहिए, न कि बाध्यकारी प्रावधानों पर।
तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना
राज्यपाल के इस फैसले के बाद तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के लिए कठोर सजा का विरोध कर भाजपा ने अपनी सोच स्पष्ट कर दी है। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस इस निर्णय का कड़ा विरोध करेगी और विधेयक को फिर से उठाया जाएगा।
कुणाल घोष ने कहा, “केंद्र ने इस विधेयक को क्यों रोका? क्या महिलाओं की सुरक्षा पर कठोर कानून बनाना अब अस्वीकार्य हो गया है?” उन्होंने इसे भाजपा की “महिला सुरक्षा के प्रति असंवेदनशीलता” का प्रमाण बताया।