शाहपुर। आधुनिकता की दौड़ और लगातार बदलते सामाजिक परिवेश में तीज-त्योहारों की पुरानी परंपराएं धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। संयुक्त परिवारों के सिमटने और बदलते जीवनशैली ने त्योहारों के पारंपरिक रूप को लगभग यादों तक सीमित कर दिया है। खासकर हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व हरियाली तीज अब पहले जैसा उल्लास और प्रेम नहीं दिखा रहा है।
पहले की तरह, हरियाली तीज पर महिलाओं में उत्साह और साज-श्रृंगार की परंपरा अब गुम होती जा रही है। कोथली (झूला झूलने की परंपरा) जैसी प्राचीन परंपराएं अब समय की धारा में खो रही हैं। एकल परिवारों की बढ़ती संख्या के कारण झूला झूलने जैसी परंपरा भी विलीन हो चुकी है। पहले, महिलाएं हरियाली तीज के दिन सुंदर साज-श्रृंगार करती थीं, मेहंदी लगवाने के लिए घर-घर मनिहार घूमते थे और नए कपड़े खरीदने का रिवाज भी था। लेकिन अब यह सब धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।
अब नहीं रचती है मेहंदी, न ही घर-घर घुमते मनिहार
हरियाली तीज के समय, महिलाएं कई दिन पहले से चूड़ियां और साज-श्रृंगार का सामान खरीदने के लिए बाजार जाती थीं। गलियों में मनिहार घूमते थे, जो महिलाओं को मेहंदी लगाने के लिए बुलाते थे। घर की छोटी और बड़ी महिलाएं एक-दूसरे के हाथों में मेहंदी लगाती थीं। लेकिन आजकल के दौर में न तो किसी के पास मेहंदी लगवाने का समय है और न ही उसपर उतना ध्यान देने की उत्सुकता। गलियों में घूमने वाले मनिहार अब कहीं दिखाई नहीं देते।
आधुनिकता ने न केवल त्योहारों की परंपराओं को प्रभावित किया है, बल्कि महिलाओं के बीच पारंपरिक रिश्तों की गर्माहट भी खो दी है। कहीं न कहीं, यह बदलते वक्त का हिस्सा बन चुका है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम अपने संस्कृति और परंपराओं को खोकर इस आधुनिकता के पीछे भाग रहे हैं?
डॉ. अनुज अग्रवाल