209 निर्दोषों को किसने मारा !

मुंबई: सन् 2006 के जुलाई महीने की 11 तारीख। रेलवे के दक्षिणी मुंबई डिवीजन की उत्तर-पश्चिम लाइन के उपनगरीय स्टेशनों – माटुंगा रोड, माहिम जंक्‍शन, बांद्रा, खार रोड, जोगेश्वरी, भयंदर, बोरिवली पर दैनिक यात्रियों की भीड़ और भागम भाग। अधिकांश गुजराती, जो काम से निवृत हो अपने अपने ठिकानों की ओर शाम को प्रस्थान करते हैं। अचानक 6.24 पर ट्रेन में जोर दार धमाका होता है और डिब्बे के परखचे उड़ जाते हैं। खून, मांस के लोथड़ों, हड्डि‌यों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता, बचे हुए बदहवास यात्रियों की चीखें हवा में गूंजती हैं।

रेलवे, जी.आर.पी, मुंबई पुलिस कुछ समझ पाती, इससे पहले ही उत्तर पश्चिमी उपनगरीय स्टेशनों पर 11 मिनटों के भीतर ट्रेनों में विस्फोट होते चले गए और निर्दोष डेली पैसेंजर हत्यारों के शिकार बनते रहे। पूरी रेल लाइन पर शवों के ढेर और घायलों की चीख-पुकार। तब विलासराव देशमुख महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। शिवराज पाटिल को गृह मंत्री बना कर दिल्ली बुला लिया गया था। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को बोलते नहीं पड़ रहा था। मुंबई में ही नहीं अपितु पूरे देश में कोहराम मचा था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बोले कि मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रूपये देंगे। मुंबई रवाना होने से पहले दिल्ली हवाई अड्डे पर गृह मंत्री शिवराज पाटिल से पत्रकारों ने पूछा- क्या यह आतंकी हमला है। वे सिर्फ यह बोले- ‘हत्यारे बच नहीं पायेंगे!’

महाराष्ट्र सरकार के अनुसार सिलसिलेवार विस्फोटों में 189 लोग मरे, 714 घायल हुए, जबकि मृतकों की संख्या 209 घायलों की 832 थी।

मुंबई रेल विस्फोटों में आतंकियों का हाथ होने की संभावना प्रकट की जा रही थीं। महाराष्ट्र एटीएस ने घटना के 36 घंटों बाद बताया कि इस कांड की साजिश पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी- इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस, लश्कर-ए-तैयबा में उसके गुर्गे आजम चीमा ने पाकिस्तान के बहावलपुर में रची और इंडियन मुजाहिदीन तथा स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के आतंकियों से घटना को अंजाम दिलाया। इससे पूर्व आजम चीमा ने बहावलपुर में शिविर लगाकर 50 लोगों को बम बनाने, बम चलाने, फायरिंग तथा घटना के बाद बच कर भागने की ट्रेनिंग दी थी। कमाल अंसारी, अब्दुल अजीज व अन्य 5 नेपाल के रास्ते बहावलपुर पहुंचे, 15 लोग गुजरात के कच्छ के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे। एहसान उल्लाह कांडला बंदरगाह के रास्ते पाकिस्तान से 20 किलोग्राम आर.डी.एक्स लेकर आया। मुंबई की विभिन्न दुकानों से अमोनियम नाइट्रेट, अन्य सामान, 8 प्रेशर कुकर व उन्हें छिपाने के काले बैग तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे गए। प्रेशर कुकर बम ट्रेनों में रखने वालों को मलाड, बांद्रा, बोरीवली तथा मुंबई की झुग्गी बस्ती में ठहराया गया।

इसबीच एटीएस ने 21 अगस्त 2006 को स्टॉप हिल क्षेत्र में ट्रेन विस्फोट के दोषियों अबू ओसामा व मोहम्मद अली को मुठभेड़ में मार गिराया। एटीएस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें फैसल शेख, आसिफ खान, कमाल अंसारी, एहतेशाम सिद्दीकी, नवीद खान पर रेकी करने टाइम टेबल के अनुसार प्रेशर बम रखने के आरोप थे। मोहम्मद साजिद अंसारी, मोहम्मद अली, डॉ तनवीर अंसारी, माजिद शफ़ी, मुजम्मिल शेख, सोहेल शेख, की विस्फोट के कुकृत्य में सहयोग करने, शरण देने, खाना पीना उपलब्ध कराने के आरोप थे।

महाराष्ट्र एटीएस ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के विशेष न्यायधीश न्यायालय में 13 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र एवं 250 गवाह पेश किये। इस बीच 21 फरवरी, 2009 को सादिक शेख ने स्वीकारा कि रेल धमाकों में उसका हाथ था। 30 सितंबर, 2015 को विशेष न्यायधीश ने एक आरोपी को बरी कर 5 को फांसी व 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

मकोका जज के इस फैसले से देश में कुछ लोगों को बहुत बड़ा‌ धक्का लगा। जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रधान मौलाना अरशद मदनी ने आतंकवाद के केस में पकड़े गए लोगों को कानूनी मदद देने को लीगल सैल बनाया हुआ है। जब भी कोई आतंकी गिरफ्त में आता है, मौलाना बयान देते हैं कि पकड़ा गया शख्स बेगुनाह, उसे मुसलमान होने के कारण प्रताड़ित किया जा रहा। इस बयान के बाद उनका लीगल सैल सक्रिय हो जाता है। 2006 के ट्रेन धमाकों के बाद भी ऐसा ही हुआ।

आतंकियों के पकड़े जाने या उन्हें अदालतों तक ले जाने के बाद मौलाना के लीगल सैल के साथ ही वामपंथी सोच के कथित बुद्धिजीवी, नेता, पत्रकार एवं सिस्टम में छिपे बैठे उनके हमद‌र्द भी सक्रिय हो जाते हैं। मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद बड़े आश्चर्यजनक रूप में भारत सरकार के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकार के. नारायणन ने बयान दिया कि हमारे पास ठोस सबूत नहीं है। बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील दायर होने के बाद ‘द प्रिंट’ तथा ‘वायर’ ने सजा पाये लोगों के पक्ष में मीडिया में प्रचार शुरू कर दिया, यद्यपि न्यायालय में चल रहे वाद पर टिप्पणी करना अवांछित है, और ऐसा करने वाले के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना का मुकदमा चल सकता है।

आरोपि‌यों की ओर से जमीयत के वकील एस. मुरलीधर ने लड़ा जो ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश पद से रिटायर हुए थे और कई अन्य, हाइकोर्टों में जस्टिस रहे थे उनके सह‌योग के लिए जमीयत को लीगल सैल के दर्जनों वकील भी आरोपियों को बचाने में जुटे थे।

अंततः बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल किलोर व जस्टिस श्याम चांडक ने पांच आरोपियों की फांसी की तथा 7 की उम्रकैद की सजा रद्द कर दी। अदालत ने गवाहों को विश्वसनीय नहीं बताया। कहा कि यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया है। आरोपियों द्वारा बम बनाना सिद्ध नहीं हुआ। जांच कर्ता श्री कर्बे को शिनाख्त परेड कराने का अधिकार नहीं था। टैक्सी चालक 100 दिन बाद कैसे आरोपी के चेहरे को याद रख सका? गवाहों के बयान अन्तर विरोधी है। पुलिस ने जबरदस्ती कबूलनामा लिखवाया।

जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के प्रधान मौलाना अरशद मदनी हाईकोर्ट के फैसले से बड़े प्रसन्न है। उन्होंने कहा- यह हमारी एक और बड़ी कामयाबी है। महाराष्ट्र के हमारे लीगल सैल ने बेगुनाहों को बचाने के लिए दिन-रात एक कर दिया, वे बधाई के पात्र हैं। पक्षपाती और सांप्रदायिक अधिकारियों द्वारा किया उत्पीड़न निन्दनीय है। न्याय व सत्य की जीत हुई जो जिम्मेदारी अधिकारियों को निभानी थी, उसे न्यायपालिका ने निभाया है।

मौलाना की खुशी स्वाभाविक है। कानून कहता है कि चाहे गुनाहगार छुट जाए, बेगुनाह को सजा न मिले। विस्फोट कांड के दो आरोपी रिहा भी हो गए हैं।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध महाराष्ट्र एटीएस ने अपील दायर कर दी है। कानूनन अपील के लंबित रहते किसी को टिप्पणी नहीं करनी चाहिये। कई विधानसभाओं के चुनाव सिर पर हैं। क्या नेतागण बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर चुनाव के दौरान अपनी खुशी का इज़हार नहीं करेंगे? करते हैं तो उन्हें बताना होगा कि 209 निर्दोष ट्रेन यात्रियों की बर्बर हत्या का गुनहगार कौन है।

छपते-छपते: सुप्रीम कोर्ट ने लगाई हाईकोर्ट के फैसले पर रोक, लेकिन आरोपी रहेंगे रिहा।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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