मतदाता सूची के मसौदे पर सियासी घमासान, चुनाव आयोग ने दी सफाई

बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर जारी विवाद के बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि जारी सूची केवल ड्राफ्ट है, न कि अंतिम। आयोग ने सवाल उठाया कि जब यह स्पष्ट किया जा चुका है कि यह मसौदा सूची है, तो फिर अनावश्यक भ्रम क्यों फैलाया जा रहा है?

निर्वाचन आयोग ने उन राजनीतिक दलों और व्यक्तियों पर नाराजगी जताई, जो इस मसौदे को अंतिम सूची के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि एक अगस्त से एक सितंबर तक दावे और आपत्तियों के लिए पूरा एक महीना दिया गया है, ऐसे में इतनी जल्दी आशंका और हंगामा क्यों?

आयोग ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे अपने 1.6 लाख बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से आग्रह करें कि वे तय समयसीमा में दावे और आपत्तियां दर्ज कराएं, ताकि किसी वास्तविक मतदाता का नाम छूटने न पाए।

7.24 करोड़ मतदाताओं ने जमा किया फॉर्म

चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले चरण में लगभग 7.24 करोड़ नागरिकों ने अपने दस्तावेजों के साथ गणना फॉर्म जमा किए हैं, जिनके नाम मसौदा सूची में जोड़े जाएंगे। मौजूदा मतदाता सूची में करीब 7.9 करोड़ नाम हैं, जिनमें से 99.8 प्रतिशत डाटा को कवर किया जा चुका है।

आयोग ने बताया कि पुनरीक्षण के दौरान 22 लाख मृतकों के नाम सूची में पाए गए हैं, जबकि करीब 7 लाख लोगों के नाम दो या अधिक जगह दर्ज थे। इसके अलावा लगभग 36 लाख मतदाता स्थायी रूप से दूसरे स्थानों पर प्रवास कर चुके हैं या उनका पता नहीं मिल सका। कुल मिलाकर, करीब 64 लाख नाम सूची से हटाए जा सकते हैं।

विपक्ष ने जताई आपत्ति

विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे नागरिकता से जोड़ते हुए कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। वहीं, राजद सांसद मनोज झा ने आरोप लगाया कि इस बड़े फैसले से पहले किसी भी दल से चर्चा नहीं की गई।

विशेष पुनरीक्षण पर क्यों उठ रहे सवाल?

चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का निर्देश जारी किया था, जो 25 जून से 26 जुलाई 2025 तक चलाया गया। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का मकसद फर्जी, अयोग्य और दोहराए गए नामों को सूची से हटाना है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया की आड़ में नागरिकता की जांच की जा रही है और इससे मतदाता अधिकारों का हनन हो सकता है।

हालांकि आयोग ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति का नाम सूची से हट जाने का मतलब यह नहीं है कि उसकी नागरिकता समाप्त हो गई है। साथ ही यह भी बताया गया कि संवैधानिक अधिकारों के तहत आयोग आवश्यक होने पर नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांग सकता है, ताकि केवल योग्य व्यक्तियों को ही मताधिकार मिले।

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