सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम तीन वर्षों की वकालत का अनुभव आवश्यक होगा, लेकिन यह शर्त केवल 20 मई 2024 के बाद जारी की गई भर्ती अधिसूचनाओं पर ही लागू होगी। न्यायालय ने साफ किया कि इससे पूर्व जारी की गई अधिसूचनाएं इस निर्णय के दायरे में नहीं आएंगी।
यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आई, जिसमें जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग (JKPSC) की 14 मई की भर्ती अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि आयोग ने अधिसूचना में तीन वर्ष की वकालत का अनुभव अनिवार्य नहीं किया।
20 मई के फैसले का संदर्भ
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पीठ—जिसमें न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया शामिल थे—ने 20 मई को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में यह निर्देश दिया था कि न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिए तीन वर्ष का अधिवक्ता अनुभव अनिवार्य होगा। यह निर्णय कानून के नए स्नातकों को इस परीक्षा में सीधे भाग लेने से रोकने के उद्देश्य से लिया गया था।
सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी
सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि चूंकि JKPSC की भर्ती अधिसूचना 20 मई के फैसले से पहले, 14 मई को जारी की गई थी, इसलिए उस पर यह नया नियम लागू नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या अधिसूचना की तारीख को जानबूझकर फैसले से पहले तय किया गया था और क्या हाईकोर्ट की फुल कोर्ट को पहले से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की जानकारी थी।
इन सवालों के बाद पीठ ने याचिका को वापस लिया हुआ मानते हुए खारिज कर दिया।