भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सहयोग से विकसित पृथ्वी अवलोकन उपग्रह NISAR ने सफलतापूर्वक सूर्य समकालिक कक्षा में प्रवेश कर लिया है। अब इसकी कमीशनिंग प्रक्रिया आरंभ हो गई है, जिसमें उपग्रह की प्रणालीगत जांच की जाएगी और उसकी कक्षा को अंतिम रूप दिया जाएगा।
कक्षा समायोजन में लगेगा करीब डेढ़ माह
NISAR को 30 जुलाई को इसरो के जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। नासा के प्राकृतिक आपदा अनुसंधान कार्यक्रम के प्रबंधक गेराल्ड डब्ल्यू. बावडेन ने बताया कि फिलहाल उपग्रह 737 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे 747 किलोमीटर की अंतिम कक्षा में लाने में लगभग 45 से 50 दिन लगेंगे। उन्होंने बताया कि कमीशनिंग पूरी होने के बाद उपग्रह के रडार सिस्टम सक्रिय हो जाएंगे और यह पृथ्वी की तस्वीरें और वास्तविक समय का डेटा भेजना शुरू करेगा।
नासा-इसरो सहयोग से मिलेगी नई वैज्ञानिक दिशा
बावडेन के अनुसार, NISAR से मिलने वाला डेटा नासा के इतिहास में किसी भी मिशन से सबसे अधिक होगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस मिशन से नासा को इसरो की उस कार्यप्रणाली से सीख मिली, जो विज्ञान को सामाजिक कल्याण से जोड़ने पर केंद्रित है, जबकि इसरो ने नासा के गहन वैज्ञानिक अनुसंधान से बहुत कुछ सीखा है। नासा की वैज्ञानिक संघमित्रा बी. दत्ता ने भी बताया कि दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग लगातार प्रगाढ़ हो रहा है। हाल ही में एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का हिस्सा बने और भारत अपना स्वतंत्र मानव मिशन भी भेजने की दिशा में काम कर रहा है।
क्या है NISAR की खासियत
इसरो ने पूर्व में भी पृथ्वी अवलोकन के लिए कई उपग्रह भेजे हैं, जैसे रिसोर्ससैट और रीसैट, जो मुख्यतः भारत केंद्रित थे। वहीं NISAR का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर पृथ्वी का अध्ययन करना है। इस मिशन से हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, वनों की स्थिति, पर्वतीय संरचनाओं में हो रहे बदलाव, भूमि पारिस्थितिकी और समुद्री क्षेत्रों की निगरानी संभव होगी। इसके अतिरिक्त, यह परियोजना प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व चेतावनी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। NISAR दोनों देशों के वैज्ञानिकों के लिए साझा हितों पर काम करने का एक अहम मंच बनकर उभरेगा।