फिच ने जीडीपी ग्रोथ अनुमान घटाया, टैरिफ का असर सीमित

फिच रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.3% कर दिया है। अप्रैल में जारी अपने वैश्विक आउटलुक में एजेंसी ने भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.4% रहने की संभावना जताई थी। शुक्रवार को जारी “इंडिया कॉरपोरेट्स क्रेडिट ट्रेंड्स” रिपोर्ट में फिच ने कहा कि बुनियादी ढांचे पर मजबूत खर्च से सीमेंट, निर्माण सामग्री, बिजली, पेट्रोलियम उत्पाद, इस्पात और इंजीनियरिंग एवं निर्माण जैसे क्षेत्रों में मांग बनी रहेगी।

फिच को उम्मीद है कि मार्च 2026 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में रेटिंग प्राप्त भारतीय कंपनियों के क्रेडिट मेट्रिक्स में सुधार आएगा। इसके पीछे कारण है कि व्यापक स्तर पर ऑपरेटिंग मार्जिन उनके ऊंचे पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) को संतुलित करने में सक्षम होंगे।

अमेरिकी टैरिफ का सीमित प्रभाव

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ का इन कंपनियों पर सीधा असर सीमित रहेगा, क्योंकि अधिकतर कंपनियों का अमेरिका को निर्यात जोखिम मध्यम या उससे कम श्रेणी में आता है। हालांकि, कुछ सेक्टरों में अतिरिक्त आपूर्ति के चलते परोक्ष दबाव देखा जा सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आने वाले कुछ उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है, जो 7 अगस्त से लागू होंगे। साथ ही, रूस के साथ व्यापार को लेकर भी अमेरिका ने प्रतिबंधात्मक रुख अपनाया है। इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है। भारत ने विशेष रूप से कृषि और डेयरी सेक्टर में शुल्क रियायत पर अपना रुख सख्त बनाए रखा है।

घरेलू मांग से कुछ सेक्टर रहेंगे अप्रभावित

फिच के अनुसार, तेल-गैस (अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम), सीमेंट, टेलीकॉम, यूटिलिटी और इंजीनियरिंग जैसे घरेलू केंद्रित क्षेत्रों पर टैरिफ का सीधा असर न्यूनतम रहेगा, क्योंकि इनकी मांग स्थानीय स्तर पर बनी हुई है और उन्हें नियामकीय समर्थन प्राप्त है।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि अमेरिका और यूरोप के लिए होने वाला निर्यात—विशेष रूप से ऑटो पार्ट्स और आईटी सेवाओं—टैरिफ अनिश्चितता के चलते प्रभावित हो सकता है। वहीं, दवाओं के निर्यात पर संभावित अमेरिकी नीतिगत बदलावों का असर पड़ सकता है। इसके अलावा, स्टील और केमिकल जैसे क्षेत्रों को अतिरिक्त वैश्विक आपूर्ति के चलते प्राइसिंग प्रेशर का सामना करना पड़ सकता है, और मेटल व माइनिंग सेक्टर में कीमतों की अस्थिरता बनी रह सकती है।

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