दिल्ली स्थित लोधी काल के स्मारक ‘शेख अली की गुमटी’ के अंदर बने पार्क में किसी भी प्रकार के बैडमिंटन या बास्केटबॉल कोर्ट का निर्माण नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा कि इस ऐतिहासिक परिसर का उपयोग केवल सार्वजनिक हित और हरियाली बनाए रखने के लिए किया जाए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने संबंधित अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि स्मारक क्षेत्र में किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि, जैसे कि दुकान या कियोस्क, की अनुमति न दी जाए। साथ ही, यह भी आश्वासन दिया गया कि चार हिस्सों में विभाजित इस पार्क का सौंदर्यीकरण और रखरखाव किया जाएगा ताकि इसकी प्राकृतिक सुंदरता बरकरार रहे और यह आम लोगों के उपयोग में बना रहे।
पीठ ने 31 जुलाई को दिए आदेश में कहा, “पार्क का प्रयोग किसी भी अन्य प्रयोजन के लिए नहीं किया जाएगा। विशेषकर इसमें खेल गतिविधियों जैसे बैडमिंटन या बास्केटबॉल कोर्ट का निर्माण नहीं होना चाहिए।”
28 अगस्त को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर को निर्देश दिया है कि वह बागवानी विभाग और अन्य संबद्ध एजेंसियों के साथ समन्वय कर पार्क की देखरेख और सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया सुनिश्चित करें। मामले की अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
मामला क्या है?
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने डिफेंस कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को स्मारक परिसर से सभी ढांचे हटाने और 1960 के दशक से कब्जे में रहने के एवज में दिल्ली सरकार के पुरातत्व विभाग को 40 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया।
यह याचिका डिफेंस कॉलोनी निवासी राजीव सूरी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने ‘शेख अली की गुमटी’ को प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 (एएमएएसआर अधिनियम) के तहत संरक्षित स्मारक घोषित करने की मांग की थी। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2019 में याचिका खारिज किए जाने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
कानूनी संरक्षण के तहत स्मारक
एएमएएसआर अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित स्मारकों को संरक्षण, बहाली और उनके आसपास अवैध निर्माण पर रोक का अधिकार मिलता है। इस अधिनियम के तहत ऐसे स्थलों को नुकसान, कब्जे और खुदाई जैसी गतिविधियों से संरक्षित रखा जाता है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए उनका संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।