इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम के वरिष्ठ उस्ताद व अरबी भाषा के बड़े विद्वान मौलाना नूर आलम खलील अमीनी का लंबी बीमारी के बाद इंतकाल हो गया। वे 70 वर्ष के थे। उनके इंतकाल की खबर से इस्लामिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। देश ही नहीं दुनिया भर में मौलाना अमीनी के हजारों शागिर्द हैं।
मूलरूप से बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी मौलाना नूर आलम खलील अमीनी दारुल उलूम में वरिष्ठ उस्ताद होने के साथ-साथ अरबी के बड़े विद्वानों में शामिल थे। वे पिछले काफी दिनों से बीमार थे। मेरठ के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। रविवार की देर रात उनकी तबीयत बिगड़ गई, उन्हें चिकित्सक के यहां ले जाया जाता उससे पहले ही उनकी मौत हो गई। मौलाना अमीनी के इंतकाल की खबर से इस्लामिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। देखते ही देखते लोगों की भीड़ अफ्रीकी मंजिल स्थित उनके आवास पर जमा हो गई।
18 दिसंबर 1952 को बिहार में जन्मे मौलाना नूर आलम खलील अमीनी का दुनिया के इस्लामिक जगत में बड़ा नाम था। उनके दुनिया भर में हजारों शागिर्द हैं। दारुल उलूम में अरबी साहित्य के शिक्षक मौलाना अमीनी की पुस्तक मुफ्ता अल-अरबिया विभिन्न मदरसों में दर्स निजामी के पाठ्यक्रम में शामिल है। अरबी भाषा में सराहनीय सेवाओं के लिए मौलाना नूर आलम खलील अमीनी को वर्ष 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विशेष सम्मान से नवाजा था।