हिमाचल प्रदेश में सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण को वैध ठहराने वाली नीति को लेकर उच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। प्रदेश हाईकोर्ट ने भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए और इसके अंतर्गत बनाए गए सभी नियमों को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया है। यह प्रावधान राज्य सरकार को अतिक्रमण की गई सरकारी भूमि को नियमबद्ध करने का अधिकार देता था।
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने यह फैसला ‘पूनम गुप्ता व अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार’ याचिका पर सुनाया, जिसमें धारा 163-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इसे मनमाना और संविधान के विरुद्ध करार दिया।
अदालत ने राज्य के महाधिवक्ता को यह आदेश मुख्य सचिव समेत संबंधित सभी अधिकारियों तक तुरंत पहुंचाने का निर्देश दिया है। साथ ही, जिन राजस्व अधिकारियों की निगरानी में अतिक्रमण हुआ, उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि 28 फरवरी 2026 तक प्रदेश की समस्त सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए।
क्या था मामला
राज्य सरकार ने पूर्व में सरकारी भूमि पर कब्जा करने वालों को राहत देने के उद्देश्य से एक नीति बनाई थी, जिसके तहत लोगों से अतिक्रमित ज़मीन के नियमितीकरण के लिए आवेदन मंगाए गए थे। इस योजना के तहत करीब 1.65 लाख लोगों ने आवेदन दिए थे। तत्कालीन सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर धारा 163-ए को शामिल किया था, जिसके आधार पर पांच से बीस बीघा तक सरकारी भूमि के नियमितीकरण का प्रावधान किया गया था।
इस संशोधित प्रावधान को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। केंद्र सरकार की ओर से भी दलीलें दी गईं कि राज्य सरकार को ऐसी नीति बनाने का अधिकार नहीं है। सुनवाई के बाद अदालत ने 8 जनवरी को निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सार्वजनिक किया गया है।