5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में छात्र संगठनों और विपक्षी दलों के व्यापक प्रदर्शनों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़ना पड़ा और उन्होंने भारत में शरण ली। तीन दिन बाद, 8 अगस्त को, अर्थशास्त्री और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की गई। यूनुस ने सत्ता परिवर्तन को बांग्लादेश के लिए एक “नई शुरुआत” बताते हुए व्यापक सुधारों और शीघ्र चुनाव कराने का आश्वासन दिया था।
अब, एक वर्ष बीत जाने के बाद, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उन वादों का क्या हुआ? क्या कानून-व्यवस्था सुधरी? क्या चुनाव की दिशा में कोई ठोस पहल हुई? क्या आर्थिक संकट थमा? और सबसे अहम—बांग्लादेश के राजनीतिक हालात किस दिशा में जा रहे हैं?
1. राजनीतिक स्थिरता का भ्रम और गहराता असंतोष
अंतरिम सरकार के गठन के समय यूनुस ने राजनीतिक समावेशन की बात की थी, लेकिन मौजूदा स्थिति इसके ठीक विपरीत दिखती है। शेख हसीना की पार्टी ‘आवामी लीग’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जबकि खालिदा जिया की ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ (बीएनपी) समय-समय पर सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरती रही है। पाकिस्तान समर्थक मानी जाने वाली जमात-ए-इस्लामी (JEI) के नेताओं की रिहाई के बाद बीएनपी और JEI के बीच तनाव और बढ़ गया है।
बाहरी तौर पर भले ही कई दल सरकार को समर्थन देते दिखें, लेकिन आंतरिक रूप से कई विवादास्पद प्रस्तावों, जैसे प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर सीमा और संवैधानिक परिषद के माध्यम से नियुक्तियां, को लेकर विरोध कायम है। कुछ दलों ने तो संविधान सभा बनाने और नए संविधान की मांग तक कर डाली है, जिसका बीएनपी कड़ा विरोध कर रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि JEI जैसी कट्टरपंथी ताकतों की वापसी और NCP जैसी अनुभवहीन पार्टियों का उभार देश को राजनीतिक अस्थिरता की ओर धकेल सकता है। वहीं NCP को यूनुस सरकार का खुला समर्थन मिलने के कारण आलोचक इसे ‘किंग्स पार्टी’ कहने लगे हैं।
2. कानून-व्यवस्था: सुधार के दावे ध्वस्त
यूनुस सरकार ने कानून-व्यवस्था को सुधारने का वादा किया था, लेकिन आंकड़े इसके विपरीत कहानी कहते हैं। 2025 में प्रतिदिन औसतन 11 हत्याएं हुईं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 8 था। बलात्कार के मामलों में भी वृद्धि देखी गई—2025 में हर दिन 15 से अधिक घटनाएं, जबकि 2023 में औसतन 14।
सबसे चिंताजनक स्थिति बच्चों के खिलाफ अपराधों की रही। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से जून 2025 के बीच 2,159 मामलों में बच्चों पर हिंसा हुई, यानी हर दिन करीब 12 घटनाएं। 2023 में पूरे वर्ष यह संख्या 2,713 थी।
हाल की कुछ घटनाओं ने दुनिया भर का ध्यान खींचा—ढाका में एक व्यापारी की नृशंस हत्या, आठ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म, और हिंदू महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं। विशेषज्ञों के अनुसार, पुलिस और न्यायपालिका के बीच तालमेल की कमी, और अभियुक्तों को आसानी से जमानत मिलने की वजह से स्थिति और बिगड़ी है।
3. चुनाव: टलती तारीखें और बढ़ता विवाद
बीएनपी और अन्य विपक्षी दलों के दबाव के बावजूद चुनाव को पहले 2025 के अंत से टालकर फरवरी 2026 तक कर दिया गया है। सेना ने भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने की मांग की है, लेकिन चुनाव प्रणाली में प्रस्तावित बदलाव—जैसे प्रत्यक्ष मतदान की जगह आनुपातिक प्रतिनिधित्व लागू करने की योजना—ने विवाद को और गहरा किया है।
JEI और NCP जैसी पार्टियों ने पुराने चुनावी ढांचे को बदलने की मांग की है, जबकि बीएनपी इसका पुरजोर विरोध कर रही है। इसके चलते चुनावी प्रक्रिया को लेकर देश में स्पष्टता नहीं है।
4. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल
अगस्त 2024 से जुलाई 2025 तक के दौरान अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर हिंदुओं, पर हमले के 157 से अधिक मामले दर्ज हुए। इन हमलों में धार्मिक त्योहारों के दौरान तोड़फोड़, आगजनी, और सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर भड़की भीड़ द्वारा हिंसा शामिल है।
पत्रकारों की सुरक्षा भी चिंता का विषय बनी है। स्वतंत्र संस्था RRAAG के अनुसार, इस एक साल में 878 पत्रकारों को निशाना बनाया गया—जो पिछले वर्ष की तुलना में 230% अधिक है। पत्रकारों पर दायर आपराधिक मामलों की संख्या भी 35 से बढ़कर 195 हो गई है।
5. अर्थव्यवस्था: विकास दर घटी, बेरोजगारी बढ़ी
भारत में पूर्व उच्चायुक्त वीणा सीकरी के अनुसार, यूनुस सरकार के कार्यकाल में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था गिरावट की ओर गई है। विकास दर जो पहले 6% थी, अब घटकर आधी रह गई है। आपूर्ति व्यवस्था में अव्यवस्था, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और फैक्ट्रियों के बंद होने से रोजगार पर संकट गहराया है।
ILO के मुताबिक, 30% युवा न तो शिक्षा से जुड़े हैं, न ही रोजगार में। लगभग 40 लाख लोगों की आजीविका खतरे में है। जुलाई 2024 में महंगाई दर 11.7% थी, जो अब घटकर 8.5% हुई है, लेकिन यह अब भी चिंताजनक स्तर पर बनी हुई है।