देश के वरिष्ठ राजनीतिक हस्तियों में शुमार पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का रविवार, 5 अगस्त को निधन हो गया। 78 वर्षीय मलिक पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे, जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। वे यूरिन इंफेक्शन और किडनी फेल्योर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उनके निधन की खबर से राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
अस्पताल प्रशासन के अनुसार, सत्यपाल मलिक की हालत लंबे समय से गंभीर बनी हुई थी और उन्हें आईसीयू में रखा गया था। दोपहर में अस्पताल की ओर से उनके निधन की पुष्टि की गई। उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले ही झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का भी दिल्ली में निधन हुआ था।
सत्यपाल मलिक: राजनीतिक सफर और योगदान
24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावड़ा गांव में जन्मे सत्यपाल मलिक ने मेरठ कॉलेज से विज्ञान स्नातक और कानून की पढ़ाई की थी। छात्र जीवन में ही वे राजनीति से जुड़ गए और 1968-69 में मेरठ कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष बने। 1974 से 1977 तक यूपी विधानसभा के सदस्य और फिर 1980 से 1989 तक राज्यसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 1989 से 1991 तक वे अलीगढ़ से लोकसभा सांसद भी रहे।
जम्मू-कश्मीर में ऐतिहासिक भूमिका
अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल रहे। उनके कार्यकाल में ही केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया।
इसके बाद उन्होंने बिहार और मेघालय में भी राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला।
राजनीतिक जीवन के उत्तरार्ध में मलिक ने कई मुद्दों पर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की, विशेष रूप से 2019 के पुलवामा हमले और कुछ परियोजनाओं में भ्रष्टाचार को लेकर उनके बयान चर्चाओं में रहे।