सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अधिवक्ता आरती साठे को बॉम्बे हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता के लिए चुनौतीपूर्ण बताया है। एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक रोहित पवार ने कहा कि न्याय व्यवस्था स्वतंत्र और निष्पक्ष होनी चाहिए, और यदि किसी व्यक्ति की राजनीतिक पृष्ठभूमि हो, खासकर यदि वह सत्तारूढ़ दल से जुड़ा रहा हो, तो जनता के मन में संदेह उत्पन्न हो सकता है।
कॉलेजियम की सिफारिश पर उठा राजनीतिक तूफान
28 जुलाई को कॉलेजियम ने अधिवक्ता आरती साठे के साथ-साथ अजीत भगवानराव कडेथांकर और सुशील मनोहर घोडेस्वर के नामों को बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद के लिए मंजूरी दी थी। इसके बाद से साठे की नियुक्ति को लेकर विपक्षी दलों द्वारा आलोचना की जा रही है।
पूर्व बीजेपी प्रवक्ता रही हैं आरती साठे
फरवरी 2023 में आरती साठे महाराष्ट्र बीजेपी की प्रवक्ता नियुक्त की गई थीं। हालांकि, जनवरी 2024 में उन्होंने निजी और पेशेवर कारणों का हवाला देते हुए न सिर्फ प्रवक्ता पद बल्कि पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और मुंबई विधि प्रकोष्ठ के प्रमुख पद से भी इस्तीफा दे दिया था।
20 वर्षों से अधिक के करियर में उन्होंने टैक्स, वैवाहिक विवादों, SEBI, SAT और CESTAT जैसे मंचों पर विविध मामलों की पैरवी की है।
विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से की हस्तक्षेप की मांग
विधायक रोहित पवार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा कर कहा कि कोई भी व्यक्ति जो सत्ता पक्ष की पैरवी सार्वजनिक मंचों पर करता रहा हो, उसकी न्यायिक नियुक्ति लोकतंत्र की आत्मा के विपरीत हो सकती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस नियुक्ति पर पुनर्विचार और रोक लगाने की अपील की है। उनका आरोप है कि सरकार के प्रभाव में चुनाव आयोग पहले ही ‘कठपुतली’ बन चुका है, और अब न्यायपालिका में भी राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ रहा है।
पवार ने यह स्पष्ट किया कि उनकी आपत्ति साठे की योग्यता पर नहीं है, बल्कि उस प्रक्रिया पर है जिसमें निष्पक्षता और सार्वजनिक विश्वास अहम होते हैं। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से इस मुद्दे पर मार्गदर्शन देने की अपील की।
भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को बताया निराधार
राज्य बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि साठे की नियुक्ति संविधान सम्मत प्रक्रिया और योग्यता के आधार पर की गई है। पार्टी के मीडिया प्रभारी नवनाथ बना ने कहा कि साठे अब बीजेपी से किसी भी तरह से जुड़ी नहीं हैं और इस वजह से उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाना अनुचित है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि से न्यायपालिका में प्रवेश नया नहीं
बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने बताया कि साठे की सिफारिश उस समय की गई जब वह पार्टी से लगभग डेढ़ साल पहले इस्तीफा दे चुकी थीं। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी राजनीति से जुड़े कई लोगों को न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जस्टिस बहारुल इस्लाम जैसे व्यक्तियों की नियुक्ति पर भी विपक्ष को जवाब देना चाहिए।
विकास बराला की नियुक्ति पर भी उठे थे सवाल
हाल ही में हरियाणा सरकार ने पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे विकास बराला को सहायक महाधिवक्ता (AAG) नियुक्त किया है। उन पर यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज है और वह फिलहाल जमानत पर हैं। उनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा विधि अधिकारियों की व्यापक भर्ती प्रक्रिया के तहत हुई, लेकिन इसे लेकर भी आलोचना हो रही है।