सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार को बड़ी राहत देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें कल्याणकारी योजनाओं में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों की तस्वीरों व नामों के उपयोग पर रोक लगाई गई थी। हाईकोर्ट ने यह आदेश 31 जुलाई को दिया था।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन. वी. अंजारिया शामिल थे, ने इस मामले में याचिकाकर्ता और AIADMK नेता सी. वी. षणमुगम पर ₹10 लाख का जुर्माना लगाया। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार की योजनाओं में मुख्यमंत्री के नाम या चित्र के उपयोग को चुनौती देने वाली याचिका आधारहीन है और यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने बुधवार को घोषणा की कि 11 अगस्त से उनकी अदालत में किसी भी वरिष्ठ वकील को तत्काल सुनवाई या सूचीबद्धता के लिए मौखिक रूप से मामला उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह फैसला उन्होंने कनिष्ठ वकीलों को अधिक अवसर देने के उद्देश्य से लिया है।
ज्ञात हो कि हाल ही में मुख्य न्यायाधीश ने मामलों को मौखिक रूप से उल्लेखित करने की पुरानी व्यवस्था बहाल की थी, जिसे पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने बंद कर दिया था। उन्होंने वकीलों को ईमेल या लिखित पत्र के माध्यम से उल्लेख करने का विकल्प दिया था।
अब अदालत के कर्मचारियों को निर्देश दिया गया है कि वे नोटिस जारी कर इस नए नियम की जानकारी दें, जिसके तहत वरिष्ठ वकीलों के बजाय कनिष्ठ वकील ही मामलों की तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख कर सकेंगे।