इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि किसी सरकारी कार्यालय की लापरवाही से कोई त्रुटि हो जाती है, तो उसके लिए संबंधित कर्मचारी को धोखाधड़ी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित होने के प्रमाण पर नियुक्त एक सहायक अध्यापक की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और उसे सेवा में बहाल करने का आदेश दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने बलिया जिले के नवतेज कुमार सिंह की याचिका पर सुनाया। याची की नियुक्ति बलिया के एक जूनियर बेसिक विद्यालय में स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित कोटे से सहायक अध्यापक पद पर 22 अक्टूबर 2020 को हुई थी। दस्तावेजों के सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया 4 अप्रैल 2008 का आश्रित प्रमाण पत्र बलिया डीएम के रिकॉर्ड में जिस क्रम संख्या 1114 पर दर्ज बताया गया था, उस पर किसी अन्य व्यक्ति — हरमीत सिंह — का नाम अंकित था।
इस आधार पर नवतेज को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। याची ने 1 अप्रैल 2021 को जिलाधिकारी कार्यालय से नया प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जिसमें पुनः यह पुष्टि की गई कि वह स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित हैं। इसके बावजूद, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं और वेतन की वसूली का भी निर्देश जारी किया।
नवतेज कुमार ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि याची के आश्रित होने पर न तो अधिकारियों ने कभी कोई संदेह जताया और न ही किसी प्रकार की जालसाजी का स्पष्ट प्रमाण सामने आया। कोर्ट ने कहा कि प्रमाण पत्र जारी करना और उसका रिकॉर्ड संधारण प्रशासनिक दायित्व है, जिसमें याची की कोई भूमिका नहीं थी।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि प्रमाण पत्र में कोई त्रुटि है और यह विभागीय गलती या लापरवाही से हुई है, तो इसे धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता, जब तक कि याची की ओर से किसी भी प्रकार की जानबूझकर गड़बड़ी, गलतबयानी या जालसाजी का प्रमाण न हो।