जली हुई नकदी बरामदगी के मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। मामले की जांच प्रक्रिया को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्मा का आचरण विश्वास योग्य नहीं माना जा सकता, इसलिए इस याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र भेजने पर भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इस फैसले में अदालत ने यह भी कहा कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो पत्र भेजा गया था, वह संविधान के विरुद्ध नहीं था।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला फरवरी 2025 में उस वक्त सामने आया जब दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई। फायर ब्रिगेड और अन्य सरकारी कर्मचारी जब मौके पर पहुंचे, तो एक कमरे में बड़ी मात्रा में जले और अधजले नोट पाए गए। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट करने की सिफारिश की और मामले की आंतरिक जांच शुरू करने का निर्णय लिया।
जांच में क्या सामने आया?
अंदरूनी जांच समिति की रिपोर्ट में सामने आया कि वह स्टोअर रूम, जहां से जले हुए नोट मिले, न्यायाधीश के सरकारी आवास का ही हिस्सा था। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि उस स्थान तक केवल न्यायाधीश या उनके परिवार के सदस्यों की ही पहुंच संभव थी। जांच पैनल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सिर्फ ट्रांसफर नहीं, बल्कि आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी सिफारिश की, जिसे बाद में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया।