गांव वाले कहाँ जायें, क्या करें !

हजारों वर्षों के इतिहाल को टटोलें तो पता चलेगा कि गांधार, पाटलिपुत्र, इन्द्रप्रस्थ, हस्तिनापुर और अयोध्या जैसे नगरों, महानगरों के अस्तित्व में आने से पूर्व महा ग्रामों का अस्तित्व था।कई बस्तियों व ग्रामों का एक जनपद होता था।

ग्रामों का विघटन होने और नगरों के विकसित होने का सिलसिला सहस्रों वर्षों से चलता आ रहा है और आज भी जारी है।

जबसे शासन ने मुजफ्फरनगर की महायोजना- 2021 को स्वीकृत किया है, तब से शहर के इर्द गिर्द के ग्रामों में हलचल है। आवास विकास परिषद द्वारा नगर की नई आवासीय बस्ती विकसित करने की योजना और शेर नगर, बिलासपुर तथा धंधेड़ा के किसानों को भूमि अधिग्रहण के नोटिस जारी होने के बाद हलचल नहीं वरन् दहशत, रोष, अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। नई कॉलोनी के लिए 284 हेक्टेयर भूमि किसानों से ली जाएगी। इससे सैकड़ों किसान बेघर, भूमिहीन, बेसहारा हो जायेंगे। शहर के विकास की यह प्रक्रिया उनके लिए जानलेवा साबित होने जा रही है।

हलकान और परेशान किसान कभी एम.डी.ए. कार्यालय पर कभी जिला अधिकारी कार्यालय पर कभी राज्यमंत्री के आवास पर डोलते घूम रहे हैं। राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने किसानों की परेशानी सुनकर उन्हें जिला अधिकारी के पास भेज दिया।

वास्तविकता यह है कि राज्यमंत्री हो या जिला अधिकारी, किसानों की अधिग्रहित भूमि का उचित मूल्य (मुआवजा) दिलाने का ही आश्वासन दे सकते हैं। भूमि का अधिग्रहण अवश्यम्भावी प्रतीत हो रहा है। शहर पर आबादी के दबाव के कारण नई कॉलोनी के निर्माण को टाला जाना सम्भव नहीं है।

अब तक यह देखने में आया है कि जमीन चली जाने के बाद किसान तबाह हुआ। नोएडा बसाने के लिए कई ग्रामों की जमीन अधिग्रहित की गई। मुआवजा मिला ढाई रुपये गज की दर से। किसान रामबीर सिंह बिधूड़ी के नेतृत्व में धरना, प्रदर्शन, भूख हड़ताल करते रहे, कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते रहे। 20 वर्षों की जद्दोजहद‌ के बाद‌ अदालत ने मुआवजा राशि 96 रुपये वर्ग गज तय की, यह किसानों के साथ गंदा और क्रूर मजाक था।

सरकारी गजट में छापा गया कि भूमि औद्योगिक इकाइयों के लिए अधिग्रहित की जाएगी किन्तु रियल एस्टेट कंपनियों से सांठगांठ कर नोएडा व ग्रेटर नोएडा में नेताओं व कॉलोनाइजरों के बीच करोडों का नहीं, अपितु अरबों का घोटाला हुआ।

जिस भूमि को ढाई रुपये गज एक्वायर किया गया, बाद में वह ढाई लाख रूपये मीटर के हिसाब से बिकी। भूमि के मूल मालिक किसान को क्या मिला?

बड़ी बड़ी आवासीय बस्तियां बसा दी गई। मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में नोएडा में चहेते नेताओं, नौकरशाहों, पत्रकारों, यहां तक, जजों को भी कौड़ियों के भाव प्लाट्‌स बांटे। भूमि का अधिग्रहण किसानों को लूटने और बेसहारा करने का एक पुख्ता कानूनी तरीका है, जिस पर अदालतें भी अपनी मुहर ठोंक देती हैं। ऐसा पहले मुजफ्फरनगर में भी हो चुका है।

चूंकि राज्यमंत्री श्री अग्रवाल ने किसानों को उनके हितों की रक्षा के प्रति आश्वस्त किया है, अतः भूमि अधिग्रहण में वे किसान हित को सर्वोच्चता दिलायें। बढ़ती जनसंख्या के कारण नई कॉलोनी का स्थापित होना अवश्यम्भावी है, क्यों कि इसका और कोई विकल्प नहीं है। किसान को लाभप्रद मूल्य दिलाने के साथ ही प्रभावित किसानों व उनके परिजनों को वैकल्पिक रोजगार अनिवार्यतः मिलना चाहिए। मुआवजे का चैक पकड़ाने के बाद शासन को किसान के रोजगार व आवास का प्रबंध करना पड़ेगा। शासन की अनेक योजनायें उत्तर प्रदेश में चल रही हैं, उनसे प्रभावित हुए किसानों को संबद्ध किया जाए ताकि किसान के सम्मुख रोजी-रोटी का संकट न आए अधिग्रहण से पूर्व सभी पक्षों की बैठकें बुलाई जाएं और सर्व सम्मति से आगे का कदम उठाया जाए।

छपते-छपते: ग्राम शेरनगर में आशु चौधरी के निवास पर ग्राम शेरनगर, बिलासपुर, धंधेड़ा, अलमासपुर, कुकड़ा व ग्राम सरवट के किसान प्रतिनिधि एकत्र हुए। कहा- ‘नहीं देंगे कॉलोनी के लिए जमीन।’

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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