पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने गुरुवार को केंद्र की भाजपा सरकार और चुनाव आयोग पर कड़ा प्रहार किया। बीरभूम जिले में आदिवासी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने दावा किया कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को ‘एसआईआर’ प्रक्रिया के जरिए लागू किया जा रहा है।
ममता बनर्जी ने कहा, “बिना पूरी जानकारी के किसी को भी कोई फॉर्म नहीं भरना चाहिए। इसके पीछे कोई और ही मंशा छिपी है। मुझे नहीं पता कि यह बात मुझे कहनी चाहिए या नहीं, लेकिन नामों को हटाने की साजिश फिर से शुरू हो गई है।”
मुख्यमंत्री ने बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान 2004 के बाद जन्मे लोगों से माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र की मांग पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब उनकी सरकार सत्ता में आई थी, तब राज्य में केवल 60 प्रतिशत लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र था। उन्होंने पूछा, “क्या यह अपेक्षा की जा सकती है कि 2004 के बाद जन्मे सभी लोगों के पास अपने माता-पिता के प्रमाण पत्र होंगे?”
ममता ने कहा, “हमारे पास तो स्कूल के सर्टिफिकेट हैं। क्या वकीलों या अधिकारियों के पास भी ऐसे दस्तावेज हैं? जो लोग विशेष सुविधाओं में पले-बढ़े हैं, वे आम लोगों की कठिनाइयों को नहीं समझ सकते।”
अधिकारियों के निलंबन और भाषा के मुद्दे पर सवाल
मुख्यमंत्री ने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले सरकारी अधिकारियों को निलंबित किए जाने के फैसले पर भी आपत्ति जताई और उस कानून का हवाला दिया, जिसके तहत यह निर्णय लिया गया था।
इसके साथ ही उन्होंने बंगाली भाषा के अपमान का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने सवाल किया, “अगर बंगाली नाम की कोई भाषा नहीं है, तो रवींद्रनाथ टैगोर कौन-सी भाषा में रचनाएँ करते थे?” उन्होंने 1912 के एक दस रुपये के नोट की तस्वीर भी दिखाई, जिसमें बंगाली भाषा में लिखा गया था। उन्होंने कहा, “पहले के नोटों में बंगाली हुआ करती थी, अब यह कह देना कि ऐसी कोई भाषा नहीं है, हमारी सांस्कृतिक विरासत का अपमान है।”
तृणमूल कांग्रेस पहले भी अन्य राज्यों में बंगाली भाषियों के साथ भेदभाव और भाषा के अपमान का मुद्दा उठा चुकी है। ममता बनर्जी हाल के दिनों में इस विषय को लेकर लगातार भाजपा सरकार पर हमलावर रही हैं। बुधवार को भी उन्होंने झारग्राम में तीन किलोमीटर लंबा पदयात्रा कर इस मुद्दे पर विरोध दर्ज कराया।