सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत व्हाट्सएप या ईमेल के जरिए नोटिस भेजना विधिसम्मत नहीं माना जा सकता। अदालत ने हरियाणा सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें जनवरी 2025 में पारित आदेश में संशोधन की मांग की गई थी।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वह इस मत से सहमत नहीं हैं कि व्हाट्सएप या ईमेल जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भेजे गए नोटिस BNSS की धारा 35 के तहत वैध रूप से तामील माने जा सकते हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसा करना विधायिका की मंशा के विरुद्ध होगा, क्योंकि BNSS में इस प्रकार के डिजिटल नोटिस की प्रक्रिया को मान्यता नहीं दी गई है।
हरियाणा सरकार ने दी थी दलील
राज्य सरकार ने याचिका में दलील दी थी कि BNSS की धारा 64(2) ई-समन प्रणाली से जुड़ी है, जबकि धारा 71 ऐसे समन से संबंधित है जिन्हें विधिवत हस्ताक्षरित कर स्कैन करके इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजा जा सकता है। सरकार ने यह तर्क भी दिया कि धारा 35 के अंतर्गत जारी नोटिस को भी इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजने की अनुमति मिलनी चाहिए, क्योंकि वह समन की श्रेणी में आता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया अंतर
पीठ ने स्पष्ट किया कि धारा 35 के अंतर्गत जारी नोटिस और धारा 71 के अंतर्गत जारी समन के प्रभाव में महत्वपूर्ण अंतर है। जहां समन का पालन न करने पर किसी की स्वतंत्रता पर तुरंत असर नहीं पड़ता, वहीं धारा 35 के नोटिस की अवहेलना से व्यक्ति की आज़ादी प्रभावित हो सकती है। इस कारण कोर्ट ने नोटिस की तामील के लिए केवल विधिसम्मत प्रक्रियाओं को अपनाने पर जोर दिया।
जनवरी में जारी हुआ था निर्देश
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2025 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दिया था कि पुलिस द्वारा CrPC की धारा 41A और BNSS की धारा 35 के तहत नोटिस भेजते समय केवल वही माध्यम अपनाए जाएं जो विधिक रूप से अनुमोदित हों। कोर्ट ने चेताया था कि व्हाट्सएप या अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म विधिक प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकते। इसके साथ ही, सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को तीन सप्ताह के भीतर आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था।