आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने वाले नियम 170 को हटाने के फैसले पर लगी रोक को हटाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। शनिवार को दायर इस आवेदन में सरकार ने सर्वोच्च अदालत से पिछले वर्ष जारी आदेश वापस लेने का आग्रह किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2023 में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 को रद्द करने संबंधी सरकार की अधिसूचना और आयुष मंत्रालय के नोटिफिकेशन पर रोक लगाई थी। यह नियम 2018 में लागू किया गया था, जिसके तहत इन पद्धतियों की दवाओं का विज्ञापन लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता।
सलाहकार बोर्ड की सिफारिश पर हटाया गया नियम
सरकार के अनुसार, 2023 में एक पत्र के माध्यम से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया था कि नियम 170 को लागू न किया जाए, क्योंकि सलाहकार बोर्ड ने इसे समाप्त करने की सिफारिश की थी। बाद में यह पत्र वापस ले लिया गया, लेकिन उसके बाद जारी अधिसूचना के जरिए नियम को पूरी तरह हटा दिया गया। अदालत में सुनवाई के दौरान इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सहित अन्य पक्षों की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए स्पष्ट किया था कि यह नियम फिलहाल प्रभावी रहेगा।
चयनात्मक प्रतिबंध का आरोप
सरकार ने अपने आवेदन में कहा है कि नियम 170 पर हितधारकों ने संवैधानिक वैधता को लेकर आपत्ति जताई है, क्योंकि यह प्रतिबंध केवल आयुष क्षेत्र पर लागू होता है, जबकि एलोपैथिक दवाएं, न्यूट्रास्यूटिकल्स, सौंदर्य प्रसाधन और खाद्य पूरक बिना ऐसी पाबंदियों के विज्ञापन कर सकते हैं। इसमें मशहूर हस्तियों द्वारा किए जाने वाले प्रचार भी शामिल हैं। यह स्थिति अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत और अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन मानी गई है।
वैकल्पिक व्यवस्था का हवाला
सरकार ने तर्क दिया है कि भ्रामक विज्ञापनों को नियंत्रित करने के लिए पहले से ही औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 मौजूद है। इसके अलावा, ‘आयुष सुरक्षा पोर्टल’ और उपभोक्ता मामलों के विभाग का GAMA पोर्टल भी शिकायतों की निगरानी और समाधान के लिए संचालित है। केंद्र का कहना है कि यह नीतिगत विषय है और अदालत को नियम 170 हटाने के फैसले पर लगी रोक समाप्त करनी चाहिए।