सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 25 साल पुराने मानहानि मामले में कोई राहत नहीं दी है। अदालत ने उनकी दोषसिद्धि को कायम रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने उन पर लगाया गया जुर्माना हटा दिया।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश में दखल देने का कोई आधार नहीं है। हाईकोर्ट ने पाटकर को अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर रिहा किया था, साथ ही उन्हें हर तीन महीने में एक बार निचली अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था।
यह मामला 24 नवंबर 2000 का है, जब दिल्ली के मौजूदा उपराज्यपाल और उस समय गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख वी.के. सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। मजिस्ट्रेट अदालत ने 1 जुलाई 2024 को पाटकर को आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराते हुए पांच महीने के साधारण कारावास और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। अदालत का मानना था कि उनके बयान मानहानिकारक थे और शिकायतकर्ता की साख को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से दिए गए थे।
सत्र न्यायालय ने उनकी अपील खारिज करते हुए दोषसिद्धि बरकरार रखी थी और आठ अप्रैल 2024 को 25,000 रुपये के परिवीक्षा बांड पर रिहा करने के साथ एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके बाद पाटकर ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां भी उनकी दोषसिद्धि कायम रही, हालांकि पेशी की शर्तों में कुछ बदलाव किया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषसिद्धि को मान्य रखा है, परंतु जुर्माना हटा दिया है।