बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक सोमवार को लोकसभा से मंजूर हो गया है। केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने इसे आजादी के बाद खेलों में किए गए सबसे बड़े सुधार के रूप में वर्णित किया है। यह विधेयक 23 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया था और इसमें एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड (एनएसबी) के गठन का प्रावधान शामिल है, जो खेल संघों की जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। अब सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) को केंद्र से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए एनएसबी की मान्यता लेना अनिवार्य होगा।
मांडविया ने कहा कि यह सुधार खेल संगठनों में पारदर्शिता, न्याय और बेहतर प्रशासन लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम है, जिसका भारत के खेल क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि इतने महत्वपूर्ण सुधारों में विपक्ष की भागीदारी नहीं हुई।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भागीदारी पर नियंत्रण
इस विधेयक के तहत केंद्र सरकार को ‘राष्ट्रीय हित’ के नाम पर निर्देश जारी करने और आवश्यकतानुसार भारतीय टीमों तथा खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भागीदारी पर रोक लगाने का अधिकार दिया गया है। विशेष रूप से यह नियम पाकिस्तान के संदर्भ में लागू होता है। सरकार की नीति साफ है कि जब कई देशों की सहभागिता वाली प्रतियोगिताएं हों, तो भारत हिस्सा ले सकता है, लेकिन पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय खेल आयोजनों पर प्रतिबंध कायम रहेगा। यह रुख 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद से है, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 150 से अधिक लोगों की हत्या की थी।
राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का प्रावधान
विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण के गठन का भी प्रावधान है, जो एक सिविल कोर्ट के समान शक्तियां रखेगा। यह न्यायाधिकरण खेल महासंघों और खिलाड़ियों के बीच चयन प्रक्रियाओं से लेकर चुनावों तक के विवादों का समाधान करेगा। एक बार स्थापित होने पर इसके फैसलों को केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी। इसके अतिरिक्त, विधेयक प्रशासकों की आयु सीमा में कुछ ढील देता है, जिसमें 70 से 75 वर्ष तक के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है, बशर्ते संबंधित अंतरराष्ट्रीय निकाय इस अनुमति को स्वीकार करें। यह नियम राष्ट्रीय खेल संहिता से अलग है, जो 70 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित करती है।