शेयर बाज़ार में मुनाफा बढ़ाने के इरादे से निवेशक पूंजी लगाते हैं, लेकिन अक्सर बाज़ार में थोड़ी गिरावट आते ही रिटेल निवेशक घबरा कर अपने शेयर बेच देते हैं। इसके बाद वही शेयर तेज़ी पकड़ लेते हैं और निवेशकों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है। जून तिमाही में यह पैटर्न साफ़ दिखाई दिया, जिसमें लाखों निवेशकों को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ।
बाज़ार के आंकड़ों के मुताबिक, पहली तिमाही में रिटेल निवेशकों ने 967 शेयरों में अपनी हिस्सेदारी घटाई, जबकि इन्हीं शेयरों ने औसतन 24% से अधिक रिटर्न दिया। प्राइम डेटाबेस ग्रुप के अनुसार, सिर्फ रिलायंस इंडस्ट्रीज़ में छोटे निवेशकों ने लगभग 6,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जबकि इस दौरान शेयर की कीमत 18% बढ़ी।
इसी तरह आरबीएल बैंक में रिटेल हिस्सेदारी 22.15% से घटकर 15.73% रह गई, लेकिन शेयर ने 43% का उछाल दर्ज किया। टूरिज्म फाइनेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में भी हिस्सेदारी 30.14% से घटकर 21.37% पर आ गई, जबकि शेयर 40% चढ़ा।
बेचने की वजहें
विशेषज्ञों के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही से पहले बाज़ार ऊंचाई पर था, लेकिन मार्च 2025 तक उतार-चढ़ाव बढ़ गया। इस दौरान अमेरिका में ट्रंप के टैरिफ़ संबंधी बयानों, मध्य-पूर्व में तनाव और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में खिंचाव ने अस्थिरता बढ़ाई। ऐसे में निवेशकों ने छोटी-सी बढ़त पर भी शेयर बेच दिए। साथ ही, मार्जिन प्रेशर, मार्जिन फंडिंग, और F&O सेगमेंट के नुकसान की भरपाई के लिए भी शेयरों की बिक्री हुई।
मौक़े को समझ नहीं पाते निवेशक
मार्केट विशेषज्ञों का कहना है कि कई रिटेल निवेशक बाज़ार की असली चाल को नहीं भांप पाते। वे शेयर बाज़ार को लॉटरी की तरह देखते हैं और बिना वैल्यूएशन समझे त्वरित मुनाफ़े की चाह में कदम उठाते हैं। अक्सर वे छोटी गिरावट में ही बाहर निकल जाते हैं, भले ही लंबी अवधि में शेयर की स्थिति मज़बूत क्यों न हो।