भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों के मुआवजे को लेकर हाईकोर्ट में 22 सितंबर को सुनवाई होने वाली है। हादसे के चार पीड़ित संगठनों के नेताओं ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता में उम्मीद जताई कि उनकी जनहित याचिका उन पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिलाने में कारगर साबित होगी, जिन्हें पहले गलत तरीके से वर्गीकृत किया गया था। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर संगठनों की याचिका में उठाए गए मुद्दों पर जवाब 22 सितंबर तक देने को कहा है। नोटिस के बाद पीड़ितों में उचित मुआवजे की उम्मीद बढ़ गई है। यूनियन कार्बाइड के दस्तावेजों में कहा गया है कि रिसी गैस (मिथाइल आइसोसाइनेट) के संपर्क में आने से स्थायी चोटें हो सकती हैं, फिर भी भोपाल गैस पीड़ितों में से 95% को अस्थायी रूप से घायल के रूप में वर्गीकृत किया गया।
गलत वर्गीकरण का मामला:
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की सदस्य नसरीन खान ने बताया कि आधिकारिक जानकारी के आधार पर यह पता चला है कि कैंसर के लिए अनुग्रह राशि पाने वाले 90% पीड़ितों और क्रोनिक किडनी रोग के लिए राशि प्राप्त करने वाले 95% पीड़ितों की चोटों को केवल मामूली या अस्थायी माना गया। उनका कहना है कि न्यायालय से आग्रह है कि भारत सरकार को निर्देश दे कि ऐसे पीड़ितों की चोटों को स्थायी और गंभीर मानकर उन्हें 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए।
पीड़ितों के साथ अन्याय:
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि कैंसर और घातक किडनी रोग से पीड़ित लोगों के साथ मुआवजे में अन्याय हुआ है, जो भोपाल गैस पीड़ितों के साथ हुए अन्याय का स्पष्ट उदाहरण है।
संगठन अभियान शुरू करेंगे:
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने बताया कि वे जागरूकता बढ़ाने और हादसे में हुई चोटों के गलत वर्गीकरण को उजागर करने के लिए अभियान शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक पीड़ित समुदाय के स्वयंसेवक सक्रिय नहीं होंगे, मजबूत मामला पेश करना मुश्किल होगा।
वेबसाइट और ऐप का विकास:
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने युवाओं से इस अभियान में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जल्द ही इसके लिए एक वेबसाइट और मोबाइल ऐप विकसित किया जाएगा और समुदाय के स्वयंसेवकों को मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि गैस त्रासदी से हुई चोटों के गलत वर्गीकरण के ठोस सबूत जुटाए जा सकें।