चुनाव आयोग ने गुरुवार को बताया कि वह मृत मतदाताओं और जिनके पास एक से अधिक वोटर आईडी हैं, उनकी सूची राजनीतिक दलों के साथ साझा कर रहा है। आयोग ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए फॉर्म में पहले से ही आधार नंबर जैसी पहचान सामग्री मांगी जाती है। यह बयान तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
आयोग ने बताया कि मृत या स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाताओं की सूची 20 जुलाई से ही राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह एसआईआर के तहत हटाए गए नामों और उन्हें सूची में शामिल न करने के कारणों को सार्वजनिक करे, ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
एसआईआर प्रक्रिया को चुनाव आयोग ने सही ठहराया
बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया के समर्थन में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह ‘तीव्र राजनीतिक टकराव के माहौल’ में काम कर रहा है, जहां उसके निर्णय अक्सर विवाद का कारण बनते हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि आयोग को एसआईआर करने का अधिकार है, लेकिन यह प्रक्रिया तर्कसंगत और निष्पक्ष होनी चाहिए।
चुनाव आयोग के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग वर्तमान में ऐसे माहौल में कार्य कर रहा है जहां उसकी हर बात पर सवाल उठाए जाते हैं। इसके बावजूद आयोग के पास एसआईआर जैसे फैसले लेने का कानूनी अधिकार है। उन्होंने बताया कि आयोग राजनीतिक दलों की खींचतान में फंसा है, जहां पार्टियां चुनाव हारने पर ईवीएम को दोष देती हैं और जीतने पर उसे सही मानती हैं।
द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि आयोग राजनीतिक दबाव के बजाय कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है। उन्होंने कहा कि 7.24 करोड़ फॉर्म जमा हुए हैं, जिनमें से पांच करोड़ नामों की जांच पूरी की जा चुकी है। यदि कोर्ट एसआईआर के प्रारंभ के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 15 दिन बाद सुनवाई करे, तो आयोग और सटीक आंकड़े प्रस्तुत कर सकेगा।
बेंच ने आयोग से पूछा कि हटाए गए मतदाताओं के नाम और कारण सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए। कोर्ट ने कहा कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और मतदाताओं का विश्वास मजबूत होगा, खासकर जब इस मुद्दे पर विभिन्न प्रकार की चर्चाएं हो रही हैं।