देहरादून। विधानसभा का मानसून सत्र 19 अगस्त से शुरू होने से पहले रविवार को धामी सरकार ने अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को कैबिनेट की मंजूरी दे दी। इस नए कानून के लागू होने के साथ ही प्रदेश में प्रचलित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 निरस्त हो जाएगा और सभी मदरसों को दोबारा पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
क्या है नया विधेयक?
राज्य सरकार पहले ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर चुकी है और अब वह विधानसभा में यह नया विधेयक पेश करने जा रही है। इसके प्रावधानों के तहत, प्रदेश के सभी अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थानों को सरकारी मान्यता लेनी होगी।
सूत्रों के अनुसार, यह कानून अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की निगरानी और उनकी गुणवत्ता सुधार के लिए एक प्राधिकरण की स्थापना का रास्ता खोलेगा। भाजपा ने इसे राज्य की पहचान और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने वाला “गेम चेंजर” कदम बताया है।
बीजेपी का पक्ष
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने कहा कि यह विधेयक देवभूमि की सांस्कृतिक और शैक्षणिक धरोहर को सुरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है। प्रस्तावित प्राधिकरण का अध्यक्ष अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा एक अनुभवी शिक्षाविद् होगा, जिसे पाठ्यक्रम तय करने और मान्यता देने के अधिकार प्राप्त होंगे।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
वहीं, कांग्रेस नेताओं ने सरकार के इस फैसले पर कड़ा रुख अपनाया है। इमरान मसूद ने सीएम धामी पर निशाना साधते हुए कहा कि वे विकास के मुद्दों से ध्यान भटकाकर ऐसे फैसले ले रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी तंज कसा कि भाजपा को ‘मदरसा’ जैसे उर्दू शब्दों से आपत्ति क्यों है? उन्होंने कहा कि मदरसा गंगा-जमुनी तहजीब की उपज है और स्वतंत्रता आंदोलन में इसका योगदान रहा है।
मदरसा बोर्ड पर असर
कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही 2016 में बनी मदरसा शिक्षा बोर्ड की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। फिलहाल प्रदेश में 452 पंजीकृत मदरसे हैं, लेकिन कई संस्थान बिना पंजीकरण के भी संचालित हो रहे हैं, खासतौर पर हरिद्वार और उधम सिंह नगर में। हाल ही में सरकार ने 237 अवैध मदरसों के खिलाफ कार्रवाई भी की थी।