उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता में महत्वपूर्ण संशोधन किए जा रहे हैं। अब विवाह पंजीकरण की अवधि बढ़ाकर छह महीने से एक साल कर दी गई है। इसके साथ ही कुछ धाराओं में दंड के प्रावधानों को भी सख्त किया गया है। मंगलवार को सरकार ने समान नागरिक संहिता उत्तराखंड संशोधन अधिनियम 2025 को विधानसभा में पेश किया, जिसे बुधवार को पारित किए जाने की संभावना है।
संशोधन के बाद अब 26 मार्च 2020 से लागू अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण कराने की सीमा एक साल हो जाएगी। निर्धारित समयसीमा समाप्त होने पर दंड या जुर्माने का प्रावधान भी लागू होगा। इसके अलावा, सब-रजिस्ट्रार के समक्ष अपील, शुल्क आदि के नियमों को भी स्पष्ट किया गया है।
समान नागरिक संहिता समिति की सिफारिशों के आधार पर अधिनियम में व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर किया गया है। साथ ही लिपिकीय त्रुटियों को भी सुधारते हुए, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) का उल्लेख किया गया है और कई स्थानों पर ‘शुल्क’ को सही रूप में ‘पैनल्टी’ के रूप में बदल दिया गया है।
बल, दबाव या धोखाधड़ी से सहवास संबंध पर सात साल तक की जेल
धारा 387 में संशोधन के तहत यदि कोई व्यक्ति बल, दबाव या धोखाधड़ी के माध्यम से किसी की सहमति प्राप्त कर सहवास स्थापित करता है, तो उसे सात साल तक की जेल और जुर्माने की सजा भुगतनी होगी।
धारा 380(2) के अनुसार, यदि कोई पहले से विवाहित व्यक्ति धोखे से लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है, तो उसे भी सात साल तक की जेल और जुर्माना भुगतना होगा। यह प्रावधान उन लोगों पर लागू नहीं होगा, जिन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप समाप्त कर दिया है या जिनके साथी का सात वर्ष से अधिक समय से कोई पता नहीं है। पूर्ववर्ती विवाह को समाप्त किए बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 के तहत दंडित किया जाएगा।
समान नागरिक संहिता में दो नई धाराएं
संहिता में दो नई धाराएं जोड़ी गई हैं। धारा 390-क के तहत विवाह, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप या उत्तराधिकार से संबंधित किसी पंजीकरण को निरस्त करने का अधिकार रजिस्ट्रार जनरल के पास होगा। वहीं धारा 390-ख के तहत भू-राजस्व बकाए की तरह लगे जुर्मानों की वसूली के लिए भी आरसी कटेगी।