विवाह का अर्थ है साथ और सहयोग, स्वतंत्र जीवन चाहते हैं तो न करें शादी : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शादी के रिश्ते में पति-पत्नी यह दावा नहीं कर सकते कि वे पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि विवाह का उद्देश्य दो व्यक्तियों और आत्माओं का मिलन है। यदि कोई व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्रता चाहता है, तो विवाह उसके लिए उपयुक्त नहीं है।

भावनात्मक और सामाजिक निर्भरता स्वाभाविक

पीठ ने कहा कि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भावनात्मक और सामाजिक रूप से निर्भर रहना स्वाभाविक है। किसी भी पक्ष का यह कहना संभव नहीं कि वह अपने जीवनसाथी पर बिल्कुल निर्भर नहीं होगा। विवाह का मूल आधार ही आपसी सहयोग और साथ है।

बच्चों के हित सर्वोपरि

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की कि छोटे बच्चों को टूटे हुए परिवार का बोझ क्यों उठाना पड़े। अदालत ने दोनों पक्षों को सलाह दी कि वे आपसी मतभेद बातचीत से सुलझाएं, ताकि बच्चों का भविष्य प्रभावित न हो। सुनवाई के दौरान पत्नी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कहा कि “एक हाथ से ताली नहीं बज सकती”, जिस पर बेंच ने जवाब दिया कि यह संदेश दोनों के लिए समान रूप से लागू होता है।

पति सिंगापुर में, पत्नी हैदराबाद में

पत्नी ने अदालत को बताया कि पति के व्यवहार के कारण वह बच्चों के साथ सिंगापुर वापस नहीं जा सकती और बिना किसी आर्थिक सहयोग के उनकी परवरिश कर रही है। वहीं, पति की ओर से कहा गया कि दोनों के पास सिंगापुर में अच्छी नौकरियां थीं, लेकिन पत्नी बच्चों के साथ वहां लौटने से इंकार कर रही है। इस पर अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए पाँच लाख रुपये जमा करे।

कोर्ट का संदेश और आदेश

सुनवाई के दौरान जब पत्नी ने कहा कि वह किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती, तो जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यदि ऐसा ही था तो शादी क्यों की गई। उन्होंने कहा कि पत्नी अपने पति पर भावनात्मक रूप से हमेशा निर्भर रहेगी। अदालत ने आदेश दिया कि पति बच्चों के जन्मदिन पर उनके साथ समय बिताए और सप्ताहांत में उन्हें अंतरिम कस्टडी भी दी जाए। मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी।

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