लोकसभा का मानसून सत्र गुरुवार को समाप्त हो गया। पूरे एक माह चले इस सत्र में बहस से ज्यादा हंगामा और स्थगन देखने को मिला। लोकसभा सचिवालय के अनुसार, 21 बैठकों वाले इस सत्र में 84 घंटे से अधिक का समय हंगामे की भेंट चढ़ गया। यह अब तक की 18वीं लोकसभा का सबसे ज्यादा व्यर्थ हुआ समय माना गया है।
120 घंटे का लक्ष्य, सिर्फ 37 घंटे काम
यह सत्र 21 जुलाई से शुरू हुआ था। शुरुआत में सभी दलों ने तय किया था कि 120 घंटे चर्चा और कामकाज के लिए होंगे। व्यापार सलाहकार समिति ने भी इस पर सहमति जताई थी। लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के मुताबिक, लगातार गतिरोध और विपक्षी हंगामे की वजह से मात्र 37 घंटे 7 मिनट का ही सार्थक काम हो सका।
सरकार ने पास कराए 12 कानून
कम समय मिलने के बावजूद सरकार ने 14 विधेयक पेश किए और 12 अहम कानून पारित कराए। इनमें ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा व नियमन विधेयक, 2025, खनिज एवं खनन (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2025 और राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025 प्रमुख रहे। संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि यह सत्र सरकार और देश के लिए उपयोगी रहा, जबकि विपक्ष की भूमिका नकारात्मक रही।
विवादित विधेयकों पर बवाल
20 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा तीन बड़े विधेयक पेश किए जाने पर सबसे ज्यादा हंगामा हुआ। इनमें यह प्रावधान शामिल था कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक गंभीर आपराधिक आरोपों में जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकेगा। इस पर विपक्ष ने कड़ा विरोध जताया और सदन में तीखी नोकझोंक हुई। नतीजा यह हुआ कि निजी सदस्यों के बिलों पर चर्चा तक नहीं हो सकी।
प्रश्नकाल और समितियों का कामकाज
सत्र में नियम 377 के तहत 537 मुद्दे उठाए गए, लेकिन सार्वजनिक महत्व के 61 नोटिस में से एक भी मंजूर नहीं हुआ। इस दौरान संसदीय समितियां सक्रिय रहीं और 124 रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें 89 स्थायी समितियों और 18 वित्तीय समितियों की रिपोर्ट शामिल थीं। मंत्रियों ने कुल 53 बयान दिए। प्रश्नकाल में 419 तारांकित प्रश्नों में से केवल 55 के मौखिक उत्तर दिए जा सके, जबकि 4,829 बिना तारांकित प्रश्न स्वीकार किए गए।